भारत के सामाजिक और चिकित्सा इतिहास में यदि
किसी एक महिला ने परंपराओं की बेड़ियों को तोड़ते हुए नई राह बनाई, तो वह हैं डॉ. रखमाबाई राऊत। समाज के रूढ़िवादी ढांचे के भीतर जन्म लेकर भी उन्होंने
अपने साहस, शिक्षा और दृढ़ निश्चय से देश में महिला सशक्तिकरण की नींव रखी। उनकी जयंती
केवल एक जन्मदिन नहीं, बल्कि स्त्री स्वतंत्रता, शिक्षा के
अधिकार और वैज्ञानिक सोच का उत्सव है।
प्रारंभिक जीवन और बाल
विवाह का संघर्ष
डॉ. रखमाबाई का जन्म 22
नवम्बर 1864 को हुआ। उनका जीवन प्रारम्भ से ही चुनौतियों से भरा हुआ था।
मात्र 11 वर्ष की आयु में उनका विवाह
कर दिया गया—एक ऐसा विवाह जिसे वे स्वीकार नहीं करती थीं। विवाह के बाद उनके पति
ने उन्हें जबरन साथ रहने के लिए अदालत में मुकदमा किया, और इस तरह यह मुकदमा
ब्रिटिश भारत की एक ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई बन गया।
“रखमाबाई बनाम दादाजी” केस न सिर्फ भारत में बल्कि ब्रिटेन की संसद में भी चर्चा का विषय बना।
रखमाबाई ने
स्पष्ट कहा— “मैं अपनी इच्छा
के विरुद्ध किसी के साथ नहीं रहूंगी।” शायद यह भारत के इतिहास में तलाक का पहला संविधानिक केस था।
उनके इस साहस ने भारतीय महिलाओं के विवाह और
स्वतंत्रता से संबंधित कानूनों की नींव हिलाकर रख दी।
शिक्षा की ओर दृढ़ कदम
सामाजिक दवाब और लंबी कानूनी लड़ाई के बाद
रखमाबाई ने एक क्रांतिकारी निर्णय लिया— स्वयं को शिक्षित करने का।
ब्रिटिश सरकार और सामाजिक सुधारकों (विशेषकर
बेहनबेकर और एडिथ पिबल्स) के सहयोग से वे इंग्लैंड गईं और चिकित्सा शिक्षा प्राप्त की।
वह यह साबित
करना चाहती थीं कि भारतीय महिला भी डॉक्टर बन सकती है, अस्पताल चला सकती है और
समाज की सेवा कर सकती है।
भारत की प्रथम महिला
चिकित्सक
सन् 1894 में वह भारत
लौटीं और भारत की पहली प्रैक्टिसिंग महिला डॉक्टर बनीं। इन्हें “डॉ. रखमाबाई
राऊत” के नाम से पहचान मिली। उन्होंने
मुख्यतः महिलाओं और बच्चों का उपचार किया और समाज में यह संदेश दिया कि— शिक्षित महिला समाज को स्वस्थ, सशक्त और
प्रगतिशील बनाती है।
उनका सामाजिक योगदान
डॉक्टर रखमाबाई ने चिकित्सक होने के साथ-साथ एक सामाजिक सुधारक के रूप में भी महत्त्वपूर्ण
कार्य किए।
1. नारी शिक्षा की समर्थक
उन्होंने बालिकाओं की अनिवार्य शिक्षा पर जोर
दिया। उनका मानना था कि शिक्षित
महिला ही अपने अधिकार, स्वास्थ्य और भविष्य को पहचान सकती है।
2. बाल विवाह के विरुद्ध आवाज़
अपने व्यक्तिगत अनुभव के कारण उन्होंने बाल
विवाह की कुप्रथा पर भी हिंमत के साथ कलम चलाई।
उनके लेख
अखबारों में छपते थे, जिससे समाज में नई चेतना फैली।
3. विधवा और कामकाजी महिलाओं
के लिए प्रेरणा
उन्होंने महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र
होने के लिए प्रेरित किया, उस समय जब समाज इसे स्वीकार नहीं करता था।
व्यक्तित्व की विशेषताएँ
- अत्यंत साहसी
- सामाजिक अन्याय के विरुद्ध मुखर
- वैज्ञानिक सोच रखने वाली
- मानवता और सेवा में विश्वास
- आत्मनिर्भरता का आदर्श
उनकी जयंती क्यों
महत्वपूर्ण है?
रखमाबाई की जयंती मनाना केवल इतिहास को याद करना
नहीं, बल्कि यह नारी स्वतंत्रता और समानता की निरंतर खोज को सम्मान देना है।
हम सीखते हैं—
- लड़की चाहे किसी भी परिस्थिति में जन्म ले, शिक्षा
उसका अधिकार है।
- अपनी इच्छा सम्मानित करवाने का हक हर महिला को है।
- साहस और दृढ़ता से सामाजिक परिवर्तन संभव है।
- विज्ञान, चिकित्सा और ज्ञान में महिलाएँ किसी भी
क्षेत्र में पीछे नहीं हैं।
डॉ. रखमाबाई राऊत की जयंती पर हम उस अग्रणी
महिला को नमन करते हैं जिसने न केवल भारत की पहली महिला चिकित्सक बनने का सम्मान
अर्जित किया, बल्कि लाखों महिलाओं के लिए स्वतंत्रता, शिक्षा और
आत्मसम्मान की नई राह खोली।
वह केवल एक डॉक्टर नहीं
थीं—
वह एक आंदोलन,
एक आवाज,
और भविष्य की रोशनी थीं।


No comments:
Post a Comment