आज के समाज में शिक्षक की छवि और समाज का दायित्व
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लेखक – आचार्य
रमेश सचदेवा
शिक्षक की छवि समाज की मानसिकता का प्रतिबिंब
होती है। वह छवि केवल शिक्षक के आचरण से नहीं, बल्कि समाज, माता-पिता,
नीतियों और
विद्यार्थियों के व्यवहार से भी निर्मित होती है। आज जब शिक्षा का स्वरूप और समाज
की सोच दोनों बदल रहे हैं, ऐसे समय में यह आवश्यक है कि हम शिक्षक की वर्तमान स्थिति
पर विचार करें और समाज के दायित्व को स्पष्ट रूप से स्वीकारें।
शिक्षक की बदलती छवि:
आज का शिक्षक केवल एक पढ़ाने वाला
व्यक्ति नहीं है, वह राष्ट्र का भविष्य गढ़ने वाला कर्तव्यनिष्ठ
कर्मयोगी है। किंतु दुर्भाग्यवश, विशेषकर निजी विद्यालयों में उसे 'पैड नौकर' समझा जाने लगा
है — एक ऐसा व्यक्ति जो केवल फीस के बदले काम करता है और जिसे सम्मान देना आवश्यक
नहीं समझा जाता।
आज का विद्यार्थी और उसके माता-पिता, दोनों शिक्षक
को सेवक की तरह देखते हैं। शिक्षक कुछ कहे तो उसका विरोध, डांटे तो शिकायत, और अनुशासन
सिखाए तो धमकी तक दी जाती है। यह मानसिकता न केवल शिक्षक की गरिमा को चोट पहुंचा
रही है, बल्कि समाज के भविष्य को भी खतरे में डाल रही है।
भय और विवशता में जीता
शिक्षक:
आज का शिक्षक भविष्य
निर्माता होते हुए भी स्वयं असुरक्षित अनुभव करता है।
- वह किसी छात्र को डांट नहीं सकता,
- अनुशासन के लिए कुछ कह नहीं सकता,
- नियमों की अनदेखी पर प्रतिवाद नहीं कर सकता।
उसे “अंधा, गूंगा और बहरा” बनकर कक्षा में केवल पाठ पढ़ाने तक सीमित रहना पड़ता है, ताकि कोई उसे
आरोपित न कर दे, कोई शिकायत न कर दे। यह स्थिति न केवल अपमानजनक है, बल्कि राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को भी दुर्बल कर रही है।
समाज का दायित्व:
1. अभिभावकों की भूमिका:
माता-पिता को
यह समझना चाहिए कि शिक्षक उनका साझेदार है, शत्रु नहीं। जब वे अपने बच्चे की हर गलती पर उसे बचाते हैं, और शिक्षक को
दोष देते हैं, तो वे बच्चे को सही-गलत के भेद से वंचित कर
देते हैं।
2. नीति-निर्माताओं की भूमिका:
सरकार और
शिक्षा बोर्डों को चाहिए कि वे निजी और सरकारी दोनों ही क्षेत्रों के शिक्षकों के
लिए सम्मानजनक वातावरण बनाएं। शिक्षक
संरक्षण अधिनियम जैसी व्यवस्थाएं लागू होनी चाहिए।
3. मीडिया और समाज की भूमिका:
मीडिया को
शिक्षकों की प्रेरक कहानियों को प्रमुखता देनी चाहिए, न कि केवल नकारात्मक घटनाओं
को सनसनी बनाकर पेश करना। समाज को शिक्षकों को "लोकनिर्माता" के रूप में देखने का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
शिक्षा का उद्देश्य: अंक
नहीं, व्यक्तित्व निर्माण
जब शिक्षक केवल परीक्षा परिणाम का दबाव झेलता है,
जब उसका
मूल्यांकन केवल छात्रों के अंक से किया जाता है, तब वह मूल्यों, संस्कारों और
चरित्र निर्माण की भूमिका से दूर हो जाता है।
समाज को समझना होगा — जो शिक्षक अपने
विद्यार्थी को डांट नहीं सकता, वह उसे संवार भी नहीं सकता।
जो शिक्षक भय
में पढ़ाता है, वह कभी दीपक नहीं बन सकता।
शिक्षक की आत्म-जागृति ही
समाज का प्रकाश है ✨
मेरे विचार में शिक्षक का एक ऐसा पक्ष है जिसे
आज उजागर करना अत्यंत आवश्यक है — और वह है उसकी असीम आंतरिक
क्षमता।
एक समर्पित शिक्षक किसी प्रकार के डर या दबाव
में नहीं जीता। वह निरंतर अपने कर्तव्य को वीरों की भांति
निभाता है, और समाज व देश को अज्ञानता, स्वार्थ और असंवेदना के अंधकार से बाहर निकालता है।
इसीलिए शिक्षक को मोमबत्ती के समान कहा गया है —
जो स्वयं जलकर दूसरों को उजाला देता है।
आज जब शिक्षा के क्षेत्र में कुछ लोग केवल
स्वार्थ वश प्रविष्ट हैं, तब यह ज़रूरी है कि वास्तविक
शिक्षक अपनी पहचान बनाए रखें और समाज उन्हें हर तरह का सहयोग दें व उनके अधिकारों
पर नकेल ना डालें। जो शिक्षक अपने कर्तव्य के प्रति सजग हैं,
वे क्रांति, इंकलाब और नव निर्माण के वाहक बनते हैं। ऐसे
शिक्षक ही समाज को सजगता का व कर्तव्यपरायणता का पाठ पढ़ाते हैं।
शिक्षक को त्याग, समर्पण और
जागरूकता का पर्याय माना जाता है। यदि कभी शिक्षा प्रणाली में गिरावट
आई है, तो जहां यह किसी हद तक शिक्षक की अधूरी प्रतिबद्धता का परिणाम है वहीं उसको
उसके अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। लेकिन जहां शिक्षक सजग हैं, वहाँ परिवर्तन की लहरें उठ रही हैं। जहां औलाद पिता
को पिता न माने वा मन को माँ नहीं वहाँ औलाद से न तो चरित्र की उम्मीद की जा सकती
है और न ही किसी कर्तव्यपरायणता की।
शिक्षक के हाथ में वह सामर्थ्य है कि वह पत्थर को भी कोहिनूर बना सकता है। कोहिनूर बनाने के लिए औजारों की जरूरत होती
है और बिना औजारों के कोहिनूर को तराश का निकाल पान अथवा बना पाना संभव नहीं है।
विचारक का कलम तभी सार्थक है जब उसमें शिक्षक की चिंगारी हो — क्योंकि किसी भी ज्ञान,
दर्शन, तर्क या
विज्ञान का आरंभ शिक्षक से ही होता है।
गुरु वही जो स्वयं जागे,
और समाज को भी जगा दे।
वह कृष्ण की
तरह सारथी बने, और अर्जुन जैसे भटके मन को धर्म, कर्म और आत्मबोध का मार्ग
दिखाए।
शिक्षक की छवि को फिर से उज्ज्वल बनाना केवल
शिक्षक का काम नहीं है, यह समाज, अभिभावकों,
नीति-निर्माताओं
और मीडिया — सभी का संयुक्त दायित्व है।
यदि हम चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी संवेदनशील,
संस्कारी,
और राष्ट्र के
लिए समर्पित बने — तो हमें शिक्षक को सम्मान देना होगा, उसे सुनना होगा, उसे उसके अधिकार लौटाने होंगे, और उसकी गरिमा
को फिर से स्थापित करना होगा।
आइए, मिलकर एक ऐसा
समाज बनाएं —
जहाँ शिक्षक डरे नहीं, बल्कि गर्व से कहे —
"मैं शिक्षक हूँ, और मैं देश का भविष्य गढ़ रहा हूँ!"
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