Tuesday, November 25, 2025

संविधान दिवस : 26 नवम्बर ‘अंतर्विरोधों के नये युग’ से कब बाहर निकलेंगे हम? दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान — भारत का

 


       संविधान दिवस : 26 नवम्बर

अंतर्विरोधों के नये युग’ से कब बाहर निकलेंगे हम?
दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान — भारत का

भारत का संविधान केवल काग़ज़ पर लिखे हुए शब्द नहीं, बल्कि उन असंख्य शहीदों के लहू से लिखा गया ग्रंथ है, जिन्होंने इस देश को स्वतंत्र बनाने के लिए अपने यौवन, सपने और प्राण तक न्यौछावर कर दिए। अगर वे बिस्मिल की कुर्बानी, भगत सिंह की फांसी, आज़ाद की गोलियाँ नेताजी की तपस्या और लाखों गुमनाम वीरों की शहादत न होती, तो भारत का संविधान केवल एक कल्पना बनकर रह जाता।

आज हम जिस संविधान की बात करते हैं, वह वास्तव में शहीदों के अधूरे सपनों का जीता-जागता रूप है— वह सपने जो उन्होंने भारत को न्याययुक्त, समतामूलक और स्वाधीन बनाने के लिए देखे थे।

यह संविधान इसलिए पवित्र है, क्योंकि यह शहीदों की अंतिम इच्छाओं का उत्तर है।

भारत का संविधान लिखना आसान था, लेकिन उसे संभव बनाना कठिन— क्योंकि संविधान की स्याही में डॉ. अम्बेडकर का विचार नहीं, बल्कि भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, आज़ाद, नेताजी,
और असंख्य अनाम शहीदों का रक्त घुला हुआ है।

आज, संविधान दिवस पर हम यह नहीं भूल सकते कि स्वतंत्र भारत की पहली सांस उन माताओं की छाती पर रोते हुए जन्मी थी जिन्होंने अपने बेटे खोकर यह आज़ादी हमें दी।

दुःख इस बात का है कि जिस संविधान को शहीदों ने अपने प्राण देकर संभव बनाया, उसी संविधान को आज राजनीतिक दल अपने लाभ, सत्ता और वोट बैंक के लिए मोड़ते जा रहे हैं।

यह संविधान शहीदों की विरासत है— न कि किसी पार्टी की निजी संपत्ति।

भारत का संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा, आकांक्षाओं और न्याय के सपनों का प्रतिबिंब है। 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने इसे अंगीकृत किया, और तब से यह विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान माना जाता है। परंतु आज, 75 वर्ष बाद, एक गंभीर प्रश्न हमारे सामने खड़ा है—

क्या भारत का संविधान अपने आप में मजबूत है या हम उसे कमजोर बनाने की दिशा में बढ़ रहे हैं?

संविधान के भीतर अंतर्विरोध: ‘नये युग’ की उलझन

भारत का संविधान मूलतः उदार लोकतांत्रिक मूल्यों, विविधता, न्याय, धर्मनिरपेक्षता, और समान अधिकारों पर आधारित है। लेकिन वास्तविकता में कई ऐसे अंतर्विरोध उभर आए हैं जो लगातार गहराते जा रहे हैं—

1. सिद्धांत बनाम व्यवहार

संविधान का आदर्श कहता है—  समानता सभी के लिए।
लेकिन व्यवहार में— जाति, धर्म, क्षेत्र, आर्थिक शक्ति, राजनीतिक संपर्क आदि इनके आधार पर अधिकारों का अनुभव अलग-अलग स्तर का दिखाई देता है।

2. शक्तियों का संतुलन बनाम राजनीतिक दखल

  • विधायिका का कार्य कानून बनाना,
  • कार्यपालिका का कार्य प्रशासन चलाना,
  • न्यायपालिका का कार्य निष्पक्ष न्याय देना—

यह तीनों शक्तियों का संतुलन संविधान की रीढ़ है। लेकिन पिछले दशक में यह संतुलन तेज़ी से बिगड़ गया है।

कभी कार्यपालिका न्यायपालिका पर प्रश्न उठाती है,
कभी न्यायपालिका विधायिका के कार्य में हस्तक्षेप करती है,
कभी संस्थाएं सत्ता के दबाव में निर्णय लेती दिखाई देती हैं।

संविधान के साथ खिलवाड़: आज की सबसे बड़ी चिंता

1. संविधान को राजनीतिक हथियार बना देना

हर राजनीतिक दल जब विपक्ष में होता है तो संविधान की दुहाई देता है, और सत्ता में आते ही वही दल संविधान को अपने अनुसार मोड़ने की कोशिश करने लगता है।

2. संविधान को वोट का जुगाड़ बना देना

  • चुनाव के समय दल संविधान की बात करते हैं
  • चुनाव जीतने के बाद वही संविधान धूल खाते फाइल जैसा व्यवहार झेलता है
  • नागरिक अधिकार केवल भाषणों की शोभा बनकर रह जाते हैं

3. संविधान की मूल भावना पर आघात

संविधान की भावना कहती है— राज्य जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।
लेकिन आज राजनीति का बड़ा हिस्सा इन्हीं आधारों पर टिकी है।

संशोधन पर संशोधन: क्या संविधान की आत्मा खो रही है?

भारत के संविधान में अब तक 100 से अधिक संशोधन हो चुके हैं। कुछ संशोधन आवश्यक थे, लेकिन कई संशोधन सत्ता के हितों के अनुसार किए गए—

1. सत्ता की सुविधा के लिए संशोधन

कई बार संशोधन इसलिए किए गए कि—

  • सरकार टिक सके
  • सत्ता का नियंत्रण बढ़ सके
  • नीतियां बिना विरोध के लागू हो सकें

2. दलगत राजनीति के अनुसार कानून बदलना

हर दल ने अपने समय में संविधान को अपने राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल किया—

  • इमरजेंसी के समय संविधान के साथ इतिहास में दर्ज सबसे बड़ा खिलवाड़ हुआ
  • राज्यों की सरकारें तोड़ना और बनाना
  • गवर्नर पद का दुरुपयोग
  • CBI, ED, पुलिस जैसी संस्थाओं का राजनीतिक व्यवहार

ये सब संविधान की आत्मा पर प्रश्नचिह्न हैं।

3. नागरिक अधिकारों पर दबाव

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मीडिया की स्वतंत्रता, इंटरनेट अधिकार—
इन सब पर कई बार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण देखने को मिलता है।

क्या संविधान केवल किताबों में बचा है?

संविधान द्वारा नागरिक को मिले अधिकार— समानता, स्वतंत्रता, शिक्षा, न्याय, अभिव्यक्ति, धर्म की स्वतंत्रता आदि ये अधिकार अब व्यवहार में कम और भाषणों में ज़्यादा दिखाई देते हैं।
नागरिक अपने अधिकार केवल न्यायालयों के आदेश से प्राप्त करता है, सामान्य प्रशासन से नहीं।

आज जरूरत है कि हम पूछें— क्या संविधान जनता के लिए है या केवल सत्ता के लिए?

हम इस अंतर्विरोध के युग से कैसे बाहर आएं?

1. संविधान की मूल भावना को राजनीतिक दखल से मुक्त करना

संविधान को दलगत हितों का उपकरण नहीं, राष्ट्र-हित का मार्गदर्शक बनाना होगा।

2. संस्थाओं की स्वतंत्रता बहाल करनी होगी

CBI, ED, पुलिस, राज्यपाल, चुनाव आयोग जैसी संस्थाएं दबाव से मुक्त हों।

3. शिक्षा में संवैधानिक मूल्यों को ईमानदारी से लागू करना

सिर्फ संविधान दिवस मनाने से कुछ नहीं होगा।
मूल्यों पर आधारित नागरिकता की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।

4. संसद में स्वस्थ बहस और विचार-विमर्श

विपक्ष और सत्ता दोनों को संविधान की भावना के प्रति जवाबदेह बनाना होगा।

5. नागरिक जागरूकता—सबसे बड़ी ताकत

वोटर को समझना होगा कि संविधान केवल चुनाव का पोस्टर नहीं, बल्कि उसके जीवन की सुरक्षा का मूल आधार है।

आखिर हम कब बाहर निकलेंगे?

जब संविधान—
राजनीतिक हथियार नहीं रहेगा
वोट का जुगाड़ नहीं रहेगा
दलगत संशोधनों का मंच नहीं रहेगा

और जब—
नागरिक अधिकार सुरक्षित होंगे
संस्थाएं स्वतंत्र होंगी
राजनीतिक दल संविधान को पवित्र मानेंगे
जनता संविधान को अपनी शक्ति मानेगी

तभी हम अंतर्विरोधों के इस नये युग से निकल पाएँगे।

जब भी कोई दल संविधान को अपने हिसाब से बदलने की कोशिश करे, हमें शहीदों के उस आख़िरी मुस्कान को याद करना चाहिए जो उन्होंने भारत की आज़ादी पर विश्वास करते हुए दी थी।

संविधान की रक्षा करना केवल नागरिक कर्तव्य नहीं, बल्कि शहीदों के सपनों की रक्षा है।

संविधान दिवस पर यही संकल्प होना चाहिए— संविधान को बचाना ही राष्ट्र को बचाना है।

 

3 comments:

Amit Behal said...

संविधान दिवस की बधाइयां...अति उत्तम लेख के लिए साधुवाद💐🙏

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks a lot brother

Dr K S Bhardwaj said...

भारतीय संविधान सबसे वृहद, लिखित मगर सबसे अधिक लोचशील भी है। समय के अनुसार उसमें संशोधन होते रहे है। भारतीय संविधान दुनियाँ के श्रेष्ठ संविधानों में से एक है। अति उत्तम , साधु