महावीर जयंती विशेष
भगवान महावीर
स्वामी की शिक्षाएं: इंद्रियों पर विजय और आधुनिक समाज के लिए जैन दिनचर्या का
महत्व
लेखक: आचार्य
रमेश सचदेवा
महावीर जयंती के पावन अवसर
पर, जब सम्पूर्ण जैन समाज और श्रद्धालुजन भगवान महावीर स्वामी के जन्म का उत्सव
मना रहे हैं, यह उपयुक्त समय है कि हम उनके जीवन, शिक्षाओं और अनुशासित जीवनशैली पर पुनः चिंतन
करें। महावीर स्वामी का जीवन, मानवता के लिए एक दिव्य प्रकाशपुंज रहा है, जिसकी ज्योति
आज भी पथदर्शन कर रही है।
भगवान महावीर
स्वामी का जीवन परिचय
महावीर स्वामी का जन्म 599
ईसा पूर्व
वैशाली के निकट कुंडलपुर में राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर हुआ था।
वर्धमान नाम से प्रसिद्ध बालक ने बचपन से ही अपूर्व साहस और संयम का परिचय दिया।
तीस वर्ष की आयु में उन्होंने सांसारिक जीवन का परित्याग कर कठोर तपस्या आरंभ की। 12
वर्षों की
तपस्या के पश्चात उन्हें केवल्य ज्ञान (परम ज्ञान) की प्राप्ति हुई और वे ‘महावीर’
कहलाए।
महावीर स्वामी ने सम्पूर्ण
जीवन 'जीयो और जीने दो' का सिद्धांत प्रतिपादित किया। उन्होंने सामाजिक भेदभाव को
समाप्त करने, आत्मा की शुद्धि पर बल देने और अहिंसा को सर्वोपरी मानने का संदेश दिया। उनके
उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे।
महावीर स्वामी की शिक्षाएं
आज की विषम परिस्थितियों में संजीवनी का कार्य कर सकती हैं। यदि हम उनकी अहिंसा,
सत्य, अपरिग्रह,
ब्रह्मचर्य और
क्षमा की शिक्षाओं को जीवन में आत्मसात करें तथा जैन साधकों की अनुशासित दिनचर्या
को अपनाएं, तो न केवल इंद्रियों पर विजय पाई जा सकती है, बल्कि हम एक शांतिपूर्ण,
समृद्ध और
सत्यमय समाज के निर्माण में भी योगदान दे सकते हैं।
भगवान महावीर स्वामी की
शिक्षाओं में नवकार मंत्र का विशेष स्थान
है।
यह मंत्र जैन
धर्म का मूल स्तम्भ है, जिसे जपने से साधक को आत्मशुद्धि, मानसिक शांति और आध्यात्मिक
ऊर्जा प्राप्त होती है।
नवकार मंत्र किसी एक देवता
या व्यक्ति की स्तुति नहीं है, बल्कि यह उन गुणों को नमन है जो किसी भी आत्मा को परम पद
तक पहुंचा सकते हैं — सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक्
चरित्र।
नवकार मंत्र के
माध्यम से हम:
- अहंकार का त्याग करते हैं,
- विनम्रता और श्रद्धा को अपनाते हैं,
- और आत्मा के भीतर छुपे दिव्य प्रकाश को जागृत करते
हैं।
नवकार मंत्र का
उच्चारण:
- नकारात्मक विचारों को शांत करता है,
- आत्मबल और धैर्य को बढ़ाता है,
- तथा जीवन को सही दिशा में अग्रसर करता है।
महावीर स्वामी ने स्वयं इस
मंत्र के मर्म को जीवन में उतारकर दिखाया — कि वास्तविक पूजा बाहरी नहीं, बल्कि गुणों के
प्रति श्रद्धा है। इसीलिए नवकार मंत्र जैन साधना का प्राण है और इंद्रियों पर विजय
पाने के साधन का महान मार्ग भी।
"नवकार मंत्र
मात्र शब्दों का समूह नहीं, बल्कि आत्मा के उत्थान का दिव्य आह्वान है।
इसे जपते हुए
हम महावीर स्वामी के पावन आदर्शों से जुड़ते हैं और अपने भीतर शांति, संयम और करुणा
के बीज बोते हैं।"
इंद्रियों पर
विजय के लिए महावीर स्वामी की पांच अनमोल शिक्षाएं
1. अहिंसा (Non-Violence):
महावीर स्वामी ने अहिंसा को
जीवन का मूल आधार बताया। उन्होंने कहा कि केवल कृत्य में ही नहीं, विचार और वाणी
में भी अहिंसा का पालन आवश्यक है। जब व्यक्ति हिंसा, द्वेष और क्रोध से दूर रहता
है, तो उसकी इंद्रियां नियंत्रित होती हैं और अंतर्मन में शांति का वास होता है।
2. सत्य (Truthfulness): सत्य के प्रति
अडिग रहना आत्मबल को बढ़ाता है। सत्य के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति मोह, छल और लालच से
मुक्त रहता है, जिससे इंद्रियों पर सहज नियंत्रण संभव हो पाता है।
3. अपरिग्रह (Non-Possessiveness): महावीर स्वामी
ने सिखाया कि अनावश्यक संग्रह से इच्छाएं जन्म लेती हैं, जो अंततः इंद्रियों को
भटकाती हैं। अपरिग्रह का पालन कर व्यक्ति सरल और संतुलित जीवन जी सकता है।
4. ब्रह्मचर्य (Celibacy
/ Self-Restraint): इच्छाओं और वासनाओं पर संयम रखने को महावीर स्वामी ने मोक्षमार्ग का साधन
बताया। ब्रह्मचर्य से मन और इंद्रियां स्थिर होती हैं, जिससे आत्मा की उन्नति संभव
होती है।
5. क्षमा (Forgiveness): क्षमा आत्मा
की महानता का प्रतीक है। जो क्षमा कर सकता है, वही क्रोध, द्वेष और
प्रतिशोध जैसी प्रवृत्तियों पर विजय पाता है। क्षमा से मन निर्मल होता है और
इंद्रियों पर सहज नियन्त्रण स्थापित होता है।
जैन साधकों की
दिनचर्या और आज के समाज में उसकी उपयोगिता
जैन साधक अत्यंत अनुशासित
और संयमित दिनचर्या का पालन करते हैं, जो इस प्रकार है:
प्रातःकाल जागरण के साथ
ध्यान और स्वाध्याय।
सात्विक और संयमित आहार;
सूर्यास्त के
बाद भोजन वर्जित।
प्रतिदिन आत्ममंथन एवं
तपस्यापूर्ण साधना।
प्राणी मात्र के प्रति दया
और पर्यावरण संरक्षण की भावना।
आज के समाज में
इसके लाभ:
मानसिक स्वास्थ्य: ध्यान और
आत्मचिंतन से तनाव का प्रबंधन होता है।
शारीरिक स्वास्थ्य:
नियंत्रित भोजन और उपवास से शरीर स्वस्थ रहता है।
सामाजिक सद्भाव: सत्य,
अहिंसा और
क्षमा के सिद्धांतों से समाज में प्रेम और समरसता बढ़ती है।
पर्यावरणीय संतुलन: जैन
साधना प्रकृति के संरक्षण की प्रेरणा देती है, जो आज के समय में अत्यंत
आवश्यक है।
इस महावीर जयंती पर आइए,
हम सभी भगवान
महावीर स्वामी के जीवन आदर्शों को आत्मसात करने का संकल्प लें और उन्हें अपने जीवन
में प्रकाशस्तंभ के रूप में स्थापित करें।
"इंद्रियों पर
विजय पाने का मार्ग बाहर नहीं, भीतर से शुरू होता है। महावीर स्वामी के सिद्धांत हमें
सिखाते हैं कि आत्मसंयम ही सच्चा बल है, और क्षमा ही सच्ची विजय।"
2 comments:
Bahut hi achhii baatekhushal Jeevan jine ke liay varnan ki h aapne . Very nice words.
Thanks.
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