अक्षय तृतीया: शुभ कर्मों का अक्षय अवसर
लेखक: आचार्य रमेश सचदेवा
परिचय
भारतीय संस्कृति में प्रत्येक पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति और सद्कर्मों की दिशा में बढ़ने का माध्यम होता है। अक्षय तृतीया ऐसा ही एक पर्व है, जो अक्षय पुण्य और अक्षय फल प्रदान करने वाला माना जाता है। अक्षय का अर्थ है – जो कभी समाप्त न हो। इस दिन किया गया दान, जप, तप और सेवा अनंत गुना फल देने वाला होता है।
पौराणिक संदर्भ
अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था, जिन्हें शस्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत माना जाता है। भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने अन्याय और अधर्म के विरुद्ध संघर्ष का संदेश दिया। इस दिन महाभारत के युग में कुंती को अक्षय पात्र मिला था, जिससे कभी भोजन समाप्त नहीं होता था।
सुदामा इसी दिन श्रीकृष्ण से मिलने गए थे और उनकी दरिद्रता का नाश हुआ। त्रेतायुग का आरंभ भी अक्षय तृतीया से ही हुआ था।
धार्मिक महत्व
इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। गंगा स्नान, अन्नदान, जलदान, वस्त्रदान आदि का विशेष महत्व है। यह तिथि ऐसी मानी जाती है, जिसमें शुभ कार्य बिना किसी मुहूर्त के संपन्न किए जा सकते हैं।
आधुनिक जीवन में महत्व
आज के समय में अक्षय तृतीया पर स्वर्ण (सोना) खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है। नया व्यापार, वाहन, भूमि, घर आदि की खरीद इस दिन शुभ मानी जाती है। यह निवेश और समृद्धि का प्रतीक बन चुका है।
संदेश
अक्षय तृतीया केवल सोना खरीदने या भौतिक वस्तुएं पाने का दिन नहीं है, बल्कि आत्मिक उन्नति और सद्कर्मों का अक्षय भंडार भरने का दिन है। इस दिन हम अन्न, जल, ज्ञान, सेवा, करुणा और प्यार का दान करें, ताकि यह पुण्य अक्षय बना रहे।
आइए, इस अक्षय तृतीया पर हम सभी अपने भीतर के परशुराम को जागृत करें – अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाएं, धर्म के मार्ग पर चलें और समाज में सकारात्मक बदलाव लाएं। यही इस पर्व का वास्तविक संदेश है।!
7 comments:
Very nice thoughts
परशुराम जयंती एवं अक्षय तृतीय पर बेहद प्रशंसनीय लेख, आपको लेख व पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत अच्छा विश्लेषण
Thanks a lot
Thanks a lot
आभार
Nice bro... Your writings are full of knowledge and information...keep going...
Post a Comment