समझदारी और विश्वास का संग्राम : आचार्य रमेश सचदेवा
जीवन के अनुभव हमें सतर्क बनाते हैं, लेकिन दिल का सरलपन अक्सर
हमें फिर से भरोसा करने के लिए मजबूर कर देता है।
समझदारी हमें सिखाती है कि हम हर झूठ को पहचान सकें, हर छल को देख
सकें। हम दुनिया की चालाकियों को, शब्दों की मिठास के पीछे
छुपे स्वार्थ को समझने लगते हैं।
परंतु,
दिल की भोली बेवकूफी इतनी मासूम होती है कि हर बार चोट खाने के बावजूद भी वह फिर से विश्वास करना
चाहता है।
यह विश्वास टूटने के डर से नहीं, बल्कि इस उम्मीद से जन्म लेता है कि शायद इस बार सच्चाई होगी, शायद इस बार प्रेम और संबंध शुद्ध होंगे।
हर झूठ को पकड़ लेना समझदारी है,
लेकिन फिर भी दिल से यकीन कर लेना इंसानियत
है।
और शायद, यही हमें इंसान बनाए रखता
है — टूट कर भी जुड़ने की कला, हार कर भी प्यार करने की
हिम्मत।
यह जीवन का सबसे सुंदर द्वंद्व है —
जहाँ समझदारी हमें बचाती है, और मासूमियत
हमें इंसान बनाए रखती है।
क्योंकि जो पूरी तरह समझदार बन जाए, वह कभी प्रेम नहीं कर सकता, और जो पूरी तरह
मासूम रहे, वह कभी जी नहीं सकता।
इसलिए शायद ज़िन्दगी का असली सौंदर्य इसी द्वंद्व में छुपा
है —
जानते हुए भी भरोसा कर लेना।
2 comments:
Yeh Bahut hi theek likha h .
Thanks.
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