राम नवमी : आज के रावणों के बीच राम की आवश्यकता : आचार्य रमेश सचदेवा
आज हम मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के
जन्मोत्सव राम नवमी के अवसर पर उन्हें श्रद्धा और प्रेम से स्मरण
करते हैं।
राम केवल एक ऐतिहासिक या धार्मिक पात्र नहीं हैं, वे एक आदर्श हैं — एक जीवन दर्शन।
जब हम वर्तमान समय पर दृष्टि डालते हैं, तो प्रतीत होता है कि हर मोड़ पर कोई न कोई रावण खड़ा है — अहंकार, लोभ, अधर्म, छल, कपट और हिंसा
के रूप में।
दया आग लिखने बैठूँ होते
हैं अनुवादित राम
रावण को भी नमन किया ऐसे थे मर्यादित राम।
अज़हर इकबाल यह शेर हमें याद दिलाता है कि राम
केवल रावण-विजेता नहीं थे, वे दया और
मर्यादा के पुंज थे।
आज के समय में प्रश्न यह उठता है कि ऐसे मर्यादित राम कहां से आएं? रामराज्य कैसे स्थापित हो?
राम कहां से लाऊं?
राम बाहर से नहीं, भीतर से आते हैं।
राम कोई चमत्कार से उत्पन्न नहीं होते, वे संस्कारों से बनते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति के भीतर राम बनाने का कार्य प्रारंभ हो तभी समाज में रामों
की कमी नहीं होगी।
इसका प्रारंभ बाल्यावस्था से हो — संस्कार, संयम, सहनशीलता, सत्यप्रियता और सेवा की भावना बच्चों के चरित्र में गूंथी
जाए।
आज आवश्यकता है कि माता-पिता, शिक्षक और समाज मिलकर एक ऐसा वातावरण निर्मित करें जिसमें चरित्र निर्माण सर्वोच्च प्राथमिकता हो।
कैसे लाऊं रामराज्य?
रामराज्य केवल सत्ता परिवर्तन से नहीं आता, वह मूल्य आधारित
जीवन से आता है।
रामराज्य का अर्थ है — सभी नागरिकों में न्याय, करुणा, ईमानदारी और धर्म के प्रति
समर्पण। इसके लिए हमें:
- व्यक्तिगत जीवन में ईमानदारी और नैतिकता का पालन करना
होगा।
- समाज में न्याय और समानता की स्थापना करनी होगी।
- राजनीति को सेवा का माध्यम बनाना होगा, स्वार्थ का नहीं।
- शिक्षा में केवल ज्ञान नहीं, बल्कि मूल्यों का भी समावेश करना होगा।
जब प्रत्येक नागरिक स्वयं को रामराज्य का
निर्माता समझेगा, तभी रामराज्य
का स्वप्न साकार होगा।
गुरुओं की आज्ञा का पालन
कैसे हो?
राम का चरित्र गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र की
आज्ञाओं के पालन के उदाहरणों से भरा है।
आज के संदर्भ में 'गुरु' का अर्थ केवल विद्यालय के शिक्षक ही नहीं, बल्कि वे सभी व्यक्ति हैं जो जीवन के मार्गदर्शक हैं —
माता-पिता, अध्यापक, जीवन के वरिष्ठ जन।
गुरु की आज्ञा का पालन तभी संभव है जब गुरु
स्वयं चरित्रवान हों और उनकी आज्ञाएं न्याय व धर्म पर आधारित
हों।
साथ ही, शिष्यों में भी विनम्रता और
आज्ञापालन की भावना का विकास करना होगा।
भाई-भाई का प्यार कैसे बने?
राम और भरत का संबंध भारतीय संस्कृति में भ्रातृप्रेम का सर्वोच्च आदर्श है।
आज भाई-भाई के बीच स्वार्थ, संपत्ति और
अहंकार दीवार बन गए हैं। इस दूरी को पाटने के लिए चाहिए:
- परिवारों में आपसी संवाद बढ़े।
- छोटे-छोटे त्याग और सेवा से प्रेम को सींचा जाए।
- स्वार्थ के स्थान पर सेवा और सहयोग को महत्व दिया जाए।
- बच्चों को बचपन से भाईचारे के मूल्य सिखाए जाएं।
वचन निभाना आज सार्थक कैसे
हो?
राम के जीवन में वचन की महत्ता सर्वोच्च थी — चाहे वह पिताजी का वचन हो, मित्र का हो या स्वयं की प्रतिज्ञा।
आज वचन की कीमत कम होती जा रही है।
वचन निभाना सार्थक तभी होगा जब व्यक्ति अपने
शब्दों के प्रति उत्तरदायी बने। इसके लिए:
- वचन देने से पहले विचार करना चाहिए।
- एक बार वचन दिया जाए तो उसे निभाने का संकल्प लेना
चाहिए, चाहे
परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों।
- समाज में वचन पालन करने वालों का सम्मान बढ़ाना चाहिए।
राम का आदर्श यही सिखाता है कि शत्रु का भी
सम्मान धर्म के दायरे में रहकर किया जाए।
अत: राम नवमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक आह्वान है — अपने भीतर
के राम को जगाने का।
आज रावण का रूप अत्यधिक जटिल और व्यापक है, लेकिन यदि हर व्यक्ति अपने भीतर रामत्व के बीज बोए, तो वह एक दीपक बनेगा, जो अंधकार में प्रकाश फैलाएगा।
राम को लाने के लिए किसी चमत्कार की आवश्यकता
नहीं — बस दृढ़ संकल्प, आस्था और सतत प्रयास चाहिए।
राम नवमी के इस पावन अवसर पर आइए, हम सभी संकल्प लें कि हम अपने भीतर राम को जागृत करेंगे और
अपने आचरण से रामराज्य की नींव रखेंगे।
2 comments:
Bahut hi achhe vichar likhe h . Sabhii ko amal karna chahiay.
Thanks
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