Wednesday, April 23, 2025

"संख्याओं की दौड़ में खोती शिक्षा – कब जागेगा समाज और सरकार?"

 


"संख्याओं की दौड़ में खोती शिक्षा – कब जागेगा समाज और सरकार?"

लेखक: आचार्य रमेश सचदेवा

भारत में शिक्षा का अर्थ कब संख्याओं की दौड़ और कोचिंग के जाल में सिमट गया, शायद किसी को पता भी नहीं चला। आज हम अपने बच्चों को पढ़ाई नहीं, अंकों की होड़ में धकेल रहे हैं। बच्चा स्कूल जाए, फिर ट्यूशन जाए, फिर रातभर होमवर्क करे – और सुबह फिर वही चक्र।

शिक्षा का मूल उद्देश्य था जीवन जीने की कला सिखाना, सोचने की क्षमता विकसित करना, लेकिन हमने इसे मात्र अंक लाने की प्रतियोगिता बना दिया है।

विश्व में अन्य देशों की राह

आज फिनलैंड, जापान, नीदरलैंड जैसे देश शिक्षा में आगे हैं, क्योंकि उन्होंने अंकों के पीछे भागना बंद कर दिया है। वहां:

  • कोचिंग संस्कृति लगभग नगण्य है
  • बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेल, कला, रचनात्मक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं।
  • शिक्षक समाज में सम्मानित हैं, उनका चुनाव कठोर मानदंडों से होता है।
  • बच्चों पर परीक्षा का दबाव नहीं होता, पढ़ाई समझ पर आधारित होती है।

यही कारण है कि फिनलैंड जैसे देश शिक्षा गुणवत्ता में विश्व में सबसे ऊपर हैं। जापान के बच्चे गणित और विज्ञान में श्रेष्ठ हैं। नीदरलैंड के बच्चे मानसिक रूप से सबसे खुशहाल माने जाते हैं।

भारत का सच – संख्याओं में उलझा भविष्य

भारत में स्थिति भयावह है। क्योंकि यहां:

  • पांच वर्ष के बच्चों को भी ट्यूशन में धकेल दिया जाता है।
  • शिक्षा का केंद्र रटने और अंक लाने तक सीमित हो गया है।
  • कोचिंग संस्थानों का कारोबार हजारों करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है।
  • शिक्षक समाज में सबसे कम सम्मानित हैं। आज भी उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर कोई ठोस नीति नहीं बनी है।

हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं – नई शिक्षा नीति, भारत को विश्वगुरु बनाना। लेकिन सच यह है कि हमने ना शिक्षकों का सम्मान सुनिश्चित किया, ना बच्चों के भविष्य को सुरक्षित किया।

कब जागेगा समाज और सरकार?

क्या शिक्षा केवल कोचिंग का नाम है?
क्या जीवन जीने की कला सिर्फ अंक लाने में सिमट कर रह गई है?
क्या हम फिनलैंड या जापान की राह नहीं अपना सकते?

सरकार से अपेक्षा:

  • शिक्षकों का सामाजिक और आर्थिक दर्जा बढ़ाया जाए।
  • कोचिंग संस्कृति को नियंत्रित किया जाए, ताकि पढ़ाई स्कूल तक सीमित रहे।
  • पढ़ाई को समझ आधारित बनाया जाए, केवल अंक आधारित नहीं।

समाज से अपेक्षा:

  • बच्चों को ट्यूशन के दबाव से मुक्त करें।
  • पढ़ाई को आनंद और रचनात्मकता का माध्यम बनाएं।
  • शिक्षकों को आदर दें, क्योंकि वही समाज का भविष्य गढ़ते हैं।

अंतिम पंक्तियाँ:

"यदि हम शिक्षा को व्यापार और अंक लाने की मशीन बनाएंगे, तो समाज में सोचने वाले नागरिक नहीं, केवल काम करने वाले हाथ तैयार होंगे।"

"समय आ गया है कि हम शिक्षा का अर्थ बदलें – कोचिंग और अंकों से हटकर जीवन के लिए सीखने की ओर बढ़ें।"

क्या हम तैयार हैं शिक्षा को पुनः उसका वास्तविक रूप देने के लिए?
सरकार और समाज दोनों को अब जागना होगा।

 

8 comments:

Anonymous said...

शिक्षा व्यवस्था पर शत प्रतिशत स्टीक विश्लेषण...

Anonymous said...

Right sachdeva ji

Anonymous said...

Excellent explanation 👏👏

Amit Behal said...

अंको की दौड़ के पागलपन को छोड़कर ज्ञान प्राप्ति और सीखने पर जोर दिया जाना चाहिए

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks a lot.

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Thanks a lot.

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks a lot.

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