Wednesday, April 16, 2025

शिक्षकों की स्थिति: ज्ञान के दीपक या बुझती लौ?

 


शिक्षकों की स्थिति: ज्ञान के दीपक या बुझती लौ?

✍️ आचार्य रमेश सचदेवा
(शिक्षा विशेषज्ञ एवं निर्देशक, EDU-STEP FOUNDATION)

“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय?”
यह प्रश्न आज के समाज के सामने फिर से खड़ा है—पर इस बार शिक्षक की नहीं, शिक्षकों की स्थिति की व्याख्या करने हेतु।

🔹 आज का परिदृश्य
भारतवर्ष में शिक्षा को हमेशा सर्वोच्च स्थान प्राप्त रहा है। शिक्षक को "गुरु" की संज्ञा दी गई, जो केवल जानकारी नहीं, जीवन-दृष्टि भी देता है।
परंतु आज की भौतिकतावादी दौड़ में वही शिक्षक, जो ज्ञान का दीपक था, स्वयं संकट में डूबता बुझता दीपक बन गया है।

🔸 समस्या की परछाइयाँ
1. सामाजिक सम्मान में गिरावट –

पहले जहां गुरु का स्थान माता-पिता से ऊपर माना जाता था, अब शिक्षक को मात्र एक कर्मचारी या सेवा प्रदाता समझा जाने लगा है।

2. आर्थिक असुरक्षा –
बहुत से निजी विद्यालयों में शिक्षकों को न तो समय पर वेतन मिलता है, न ही भविष्य की कोई सुरक्षा। सरकारी शिक्षक भी गैर-शैक्षणिक कार्यों में उलझाए जाते हैं।

3. भावनात्मक थकावट –
मूल्यहीन प्रतिस्पर्धा, अनुशासन की गिरती स्थिति और तकनीकी दबाव ने शिक्षक को मानसिक रूप से थका दिया है।

4. आदर्श की कमी –
समाज में शिक्षक का व्यवहार देखने की अपेक्षा रहती है, लेकिन उन्हें प्रेरणा देने वाले आदर्श अब दुर्लभ होते जा रहे हैं।

🔹 फिर भी जल रहा है दीपक…
इन सबके बीच भी कई शिक्षक हैं, जो संसाधनों की कमी, पारिवारिक दबाव, न्यूनतम वेतन और समाज की उपेक्षा के बावजूद अपने छात्रों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने में लगे हैं।

वे विद्यालयों में ज्ञान के दीपक की भांति, हर सुबह नए उत्साह से बच्चों को पढ़ाने आते हैं, चाहे खुद की आँखों में चिंता और थकावट क्यों न हो।

🔸 क्या करें हम?
✔ शिक्षकों को सम्मान दें – हर विद्यार्थी, अभिभावक और संस्थान को शिक्षक के प्रयासों को पहचानना चाहिए।
✔ प्रशिक्षण और सहयोग – शिक्षकों को नए तरीकों से जोड़ने के लिए उन्हें निरंतर प्रेरणा और प्रशिक्षण देना होगा।
✔ नीतियों में बदलाव – सरकार और समाज दोनों को शिक्षक की भूमिका को पुनः परिभाषित करना होगा, ताकि वे शिक्षा के क्षेत्र में टिक सकें और विकास कर सकें।

मित्रो, आज शिक्षक केवल किताबें पढ़ाने वाला नहीं, आदर्श गढ़ने वाला शिल्पी है।
हमें यह निर्णय करना है कि हम शिक्षक को बुझती लौ मानकर उपेक्षित करें या ज्ञान का दीपक मानकर उसे फिर से प्रज्ज्वलित करें।

"एक अच्छा शिक्षक, एक समाज को रोशनी दे सकता है।
तो चलिए, उसके लिए एक दीप हम भी जलाएँ।"
🪔

4 comments:

Anonymous said...

Achha lekh likha h smaj ko shiksha ke liay.

Anonymous said...

अप्रतिम विश्लेषण सर.....आज शिक्षक को केवल व्यवसायिक दृष्टि से देखा जाता है l

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

धन्यवाद जी

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

धन्यवाद जी