Saturday, April 12, 2025

हनुमान: शक्ति से अधिक शरणागति का आदर्श

 


हनुमान: शक्ति से अधिक शरणागति का आदर्श

— विशेष लेख | हनुमान जयंती 2025 —

लेखक : आचार्य रमेश सचदेवा

हनुमान जी का दुर्लभ पक्ष: केवल बल नहीं, पूर्ण समर्पण

हनुमान जयंती का पर्व आते ही हम 'पराक्रम' और 'भक्ति' के इस अद्वितीय प्रतीक को श्रद्धा से स्मरण करते हैं। परंतु यदि हम गहराई से देखें, तो हनुमान जी के जीवन का सबसे दुर्लभ पक्ष केवल उनकी शक्ति या सेवा नहीं, बल्कि उनकी पूर्ण शरणागति है।

हनुमान जी ने कभी अपने अस्तित्व को स्वतंत्र सत्ता नहीं माना। उनके जीवन में 'मैं' नाम की कोई सत्ता नहीं थी — केवल 'राम' थे।

जब माता सीता ने उन्हें अपना परिचय देने को कहा, तो हनुमान जी ने आत्मबोध से भरे ये अमूल्य शब्द कहे:

"देह बुद्ध्या दासोऽहम्, जीव बुद्ध्या त्वदंशकः।

आत्मा बुद्ध्या त्वमेवाहम्, इति मे निश्चिता मतिः।"

(देह की दृष्टि से मैं आपका सेवक हूं, जीव की दृष्टि से आपका अंश हूं, और आत्मा की दृष्टि से स्वयं आप हूं। यही मेरा अटल विश्वास है।)

सेवा, शक्ति और शरणागति का संदेश

हनुमान जी के जीवन से हमें यह दुर्लभ शिक्षाएं मिलती हैं:

Ø सेवा में स्वार्थ नहीं होना चाहिए।

Ø शक्ति में अहंकार नहीं होना चाहिए।

Ø भक्ति में द्वैत नहीं होना चाहिए।

Ø जीवन का ध्येय स्वयं नहीं, परमात्मा होना चाहिए।

आज के युग में, जब 'अहं' हर संबंध और प्रयास में बाधा बन रहा है, हनुमान जी का जीवन सिखाता है कि "शक्ति का अर्थ स्वयं को बड़ा बनाना नहीं, स्वयं को प्रभु के चरणों में समर्पित करना है।"

संकटमोचक बनने की प्रेरणा

हनुमान जी ने हर कठिन परिस्थिति में दूसरों के कष्ट दूर करने को ही अपना धर्म समझा। चाहे लंका का ध्वंस हो या संजीवनी लाना, हर कार्य में उनका ध्येय केवल एक था — प्रभु की सेवा।

वे संकटमोचन बने, न कि यशमोचन।

सच्चा नायक वही है जो दूसरों के दुख हरता है, अपनी प्रशंसा नहीं चाहता।

प्रेरणादायक उद्धरण

"जब तक 'मैं' है, तब तक दूरी है;

जब 'मैं' मिटता है, तब राम अपने आप प्रकट होते हैं।"

(हनुमान जयंती पर आत्मबोध का संदेश)

गहन दो पंक्तियों की कविता

"राम नाम बसा था जिसकी सांसों में,

वही हनुमान बसा है आज भी विश्वासों में।"

हनुमान जयंती केवल जयकारे और पूजन का दिन नहीं है।

यह अपने भीतर छुपे 'अहं' को पहचानने और उसे 'राम' के चरणों में अर्पित करने का दिन है।

जिस क्षण हम भी हनुमान जी की भांति कह सकें — "मैं कुछ नहीं, राम सब कुछ हैं," उसी क्षण जीवन में सच्ची विजय प्राप्त होगी।

जय श्री राम! जय बजरंगबली!

5 comments:

Anonymous said...

Bahut khoob ji

Dr K S Bhardwaj said...

वाह! लीक से हट कर श्री हनुमान जी पर आलेख।

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

आभार भाई साहब

Amit Behal said...

Jai Hanuman