आचार्य रमेश सचदेवा
13 अप्रैल — यह केवल एक तारीख नहीं है, बल्कि इतिहास का वह धधकता हुआ पृष्ठ है जो हमें अपने कर्तव्य, साहस और स्वाभिमान की याद दिलाता है।
वैसाखी, जो फसल के पके होने की खुशी का प्रतीक है, हमें सिखाती है कि परिश्रम का फल कितना मधुर होता है। धरती पर स्वर्णिम अन्न लहराते हैं तो किसान का चेहरा गर्व से दमकता है। पर वैसाखी केवल कृषि पर्व नहीं है — 1699 में इसी दिन गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कर धर्म, साहस और आत्मगौरव का नया इतिहास रचा था। उन्होंने हमें सिखाया कि अन्याय के विरुद्ध संगठित होकर खड़ा होना ही सच्चा धर्म है।
पर 13 अप्रैल का एक और कड़वा सच है — जलियांवाला बाग हत्याकांड।
1919 में इसी दिन, निर्दोष, निहत्थे भारतीयों पर अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने अंधाधुंध गोलियां चलवाईं। सैकड़ों लोग शहीद हो गए और हजारों घायल हुए। उस दिन न केवल लोगों के शरीर घायल हुए थे, बल्कि भारतवासियों की आत्मा भी लहूलुहान हो गई थी।
लेकिन यही पीड़ा, आज़ादी की चिंगारी बनी।
यही दर्द, संघर्ष की मशाल बना।
यही आंसू, एक दिन स्वतंत्रता के मुस्कान में बदले।
आज की पीढ़ी के लिए 13 अप्रैल का संदेश बहुत स्पष्ट है:
- परिश्रम करो और अपने श्रम पर गर्व करो।
- अन्याय के विरुद्ध हमेशा आवाज़ उठाओ, चाहे वह कहीं भी हो — समाज में, कार्यक्षेत्र में या जीवन के किसी मोड़ पर।
- अपने संस्कारों और संस्कृति को समझो, उन्हें जीवन में उतारो और दुनिया में अपने देश का नाम रोशन करो।
13 अप्रैल हमें सिखाता है —
कि बलिदान केवल इतिहास की किताबों में बंद करने के लिए नहीं हैं।
वे हमें जागने, समझने और सशक्त बनने की प्रेरणा देते हैं।
अगर हम आज भी आलस्य, स्वार्थ और चुप्पी में जकड़े रहे, तो उन शहीदों के बलिदान को व्यर्थ कर देंगे।
आओ, इस 13 अप्रैल को केवल औपचारिकता बनाकर न मनाएं,
बल्कि इसे अपने भीतर एक नई चेतना और उत्तरदायित्व की तरह जीवित करें।
2 comments:
Bahut achhe se varnan Kia h 13 April ka .
Thanks
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