करवा चौथ: सजावट ज़्यादा, संवेदना कम
✍️ लेखक – आचार्य रमेश सचदेवा
करवा चौथ — एक ऐसा पर्व जो कभी त्याग, प्रेम और विश्वास का प्रतीक हुआ करता था,
आज धीरे-धीरे फैशन, दिखावे और सोशल मीडिया की चमक में अपनी आत्मा
खोता जा रहा है। पहले यह दिन भावना का उत्सव था, अब यह फोटोशूट का
मौका बन गया है। कभी यह “एक दिन का व्रत नहीं, जीवनभर का वचन” था, अब यह “एक दिन का
ट्रेंड और फिल्टर वाला त्योहार” बनता जा रहा है।
जब प्रेम था पूजा, न कि प्रदर्शन
पुराने समय की स्त्रियाँ न गहनों के पीछे थीं,
न गिफ्ट्स के
पीछे। उनके लिए यह दिन अपने पति
की लंबी आयु, परिवार की सुरक्षा और आत्मिक संबंध का प्रतीक था। चाँद देखने से पहले उनके चेहरे पर जो आस्था की शांति झलकती
थी, वह आज हजारों फिल्टर वाली तस्वीरों में भी नहीं मिलती।
वह भक्ति का सौंदर्य था — जहाँ सिंगार से बड़ा संस्कार था।
आज का करवा चौथ – परंपरा की
आड़ में ट्रेंड
आज करवा चौथ “संस्कृति से
सेल्फी तक की यात्रा” पूरी कर चुका है। महँगी साड़ियाँ, डिजाइनर थालियाँ, पार्लर की अपॉइंटमेंट्स और इंस्टाग्राम रील्स — यही आज की तैयारियों का हिस्सा बन गया है। त्योहार की भावना अब पोस्ट के
कैप्शन में सिमट गई है — “#CoupleGoals
#KarwaChauthVibes” कहीं न कहीं, इस दिखावे में वह मौन प्रेम खो गया है, जो कभी इस व्रत का मूल था।
जब श्रद्धा के स्थान पर
सौदेबाज़ी आ गई
अब यह दिन उपहारों और
प्रदर्शन का अवसर बन गया है। पति गिफ्ट दे तो अच्छा, न दे तो मन में शिकायत। प्रेम की गहराई अब महंगे उपहारों
और फोटो लाइक्स से मापी जाने लगी है। बाज़ार ने
त्यौहार को इस तरह घेर लिया है कि “भावनाओं से बाज़ार तक” का सफर पूरा हो चुका है। यहाँ तक कि दुकानों में “करवा चौथ स्पेशल ऑफर्स” लिखे बैनर, हमारे समाज का
मौन व्यंग्य बन गए हैं।
त्योहार का चेहरा क्यों बदलता जा रहा है?
हमारी परंपराएँ हमारी पहचान हैं, पर आधुनिकता की
आंधी में ये परंपराएँ रिवाज़ नहीं, रनवे बनती जा रही हैं। जहाँ पहले
सादगी में सौंदर्य था, अब दिखावे में झूठा आत्मविश्वास है। त्योहारों की आत्मा अब
चमकते मेकअप और कैमरे की फ्लैश में खो गई है। हमने त्योहार
को मनाने से ज़्यादा दिखाने का माध्यम बना
दिया है।
फैशन का चाँद, आस्था की परछाई
आज की महिलाएँ उस चाँद को देखने से पहले अपने चेहरे के मेकअप की परतें देखती हैं। यह वही चाँद है,
जिसके नीचे कभी
सच्चे प्रेम की शपथ ली जाती थी, और आज उसी के साथ सेल्फी ली जाती
है।
“फैशन का चाँद,
आस्था की परछाई” — यही आज के करवा चौथ की सच्ची तस्वीर है।
जब त्योहार खोने लगे अपनी आत्मा
हर त्योहार का उद्देश्य लोगों को जोड़ना,
संवेदनाओं को
जगाना और मन में विनम्रता लाना था।
पर जब त्योहार प्रतिस्पर्धा और प्रदर्शन में बदल जाए, तो वह केवल
कैलेंडर की तारीख बनकर रह जाता है। “श्रद्धा का व्रत या दिखावे का दिन” — अब यह प्रश्न हमारे समाज के
सामने खड़ा है।
सच्चा करवा चौथ – त्याग में
सौंदर्य
सच्चा करवा चौथ वही है जहाँ व्रत शरीर का नहीं, विचारों का हो। जहाँ शृंगार चेहरे का नहीं,
आत्मा का हो। जहाँ भक्ति मंदिर में नहीं, व्यवहार में दिखे। त्योहार तभी सच्चा है जब वह हमें संस्कार,
संयम और
संवेदना सिखाए। “त्याग में छिपा सौंदर्य” ही इस पर्व की असली पहचान
है।
अत: सादगी में ही संस्कृति
की सुगंध है। करवा चौथ कोई मेकअप ब्रांड नहीं, यह संबंधों की
पवित्रता का प्रतीक है। आइए, हम फिर से उसे
उसी अर्थ में मनाएँ — जहाँ प्रेम प्रदर्शन नहीं, प्रार्थना बने; जहाँ दिखावा नहीं, दृढ़ विश्वास हो; जहाँ सोशल मीडिया पोस्ट
नहीं, सच्ची भावना हो।
करवा चौथ तभी पूर्ण होगा जब हम “विश्वास की
रोशनी में चमकते संस्कार” फिर से अपने जीवन में जलाएँ — और यह पर्व फिर से बन जाए — “प्रेम का मौन
उत्सव।”
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2 comments:
उचित व सकारात्मक विचार l
दिखावा - परस्ती के वर्तमान युग ने सभी त्योहारों की गरिमा और भावना को आहत किया है और उसे बनावटी बना कर रख दिया है...
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