Thursday, October 9, 2025

चिट्ठियाँ – दिल से दिल तक का सफ़र

 

💌 चिट्ठियाँ – दिल से दिल तक का सफ़र

(विश्व डाक दिवस – 9 अक्टूबर के अवसर पर)

आज 9 अक्टूबर है — विश्व डाक दिवस
पर सवाल उठता है — कहाँ गईं वो चिट्ठियाँ? कहाँ गए डाकिए?”
कभी जो हर आँगन में खुशियों की खबर लाते थे, आज वो यादों की धूल में कहीं खो गए हैं।

✉️ चिट्ठियों का महत्व – शब्दों से ज़्यादा भावनाओं का भार

चिट्ठी सिर्फ कागज़ पर लिखे शब्द नहीं होती थी, वह भावनाओं की धड़कन होती थी।
हर अक्षर में किसी का इंतज़ार बसता था, हर लिफ़ाफे में किसी की सांसें बंधी होती थीं।

कभी माँ अपने बेटे को परदेस में लिखती — बेटा, खाना समय पर खा लेना।
कभी पिता अपने बच्चे के हेडमास्टर को पत्र लिखता — मेरा बेटा शरारती है, पर दिल से अच्छा है, उसे समझाइए।

इतिहास गवाह है — नेहरू जी ने अपनी बेटी इंदिरा गांधी को जेल से चिट्ठियाँ लिखीं,
जो आज भी Letters from a Father to His Daughterके नाम से ज्ञान और स्नेह का अमर दस्तावेज़ हैं। और इतिहास में दर्ज है हुमायूं को कर्मवती की वह चिट्ठी, जिसमें उसने ‘राखी’ के रिश्ते से अपनी रक्षा मांगी थी — कागज़ के उस टुकड़े ने एक सम्राट के हृदय को बाँध लिया था।

💌 फौजियों के लिए चिट्ठियाँ – सांसों की डोर

फौजियों के लिए तो चिट्ठियाँ अब भी ज़िंदगी की रेखा हैं।
जहाँ मोबाइल नेटवर्क नहीं पहुँचता, वहाँ आज भी डाकिए की थैली उम्मीद लेकर पहुँचती है।
कभी कोई लिखता — आपकी चिट्ठी आई, तो जैसे सारा मोर्चा फूलों से भर गया।

गीत याद आता है —
🎵चिट्ठी आई है वतन से चिट्ठी आई है…
वो चिट्ठियाँ जो आँसुओं से भीगी होती थीं, पर मन में अटूट हिम्मत भर देती थीं।

📱 ईमेल और व्हाट्सएप के युग में बदलाव

अब सबकुछ बदल गया है — ईमेल, व्हाट्सएप, इमोजी, वॉइस नोट्स ने जगह ले ली है।
संदेश अब सेकंडों में पहुँच जाते हैं, पर उनमें वह ऊष्मा नहीं, जो हाथ से लिखी चिट्ठी में होती थी।

लाभ यह हुआ कि दूरी घट गई, समय बचा, पर हानि यह हुई कि भावनाओं की गहराई खो गई।
अब न कोई प्रिय पुत्र लिखता है, न कोई आपका स्नेही लिखकर पत्र समाप्त करता है।

चिट्ठियों में जो सुगंध, धैर्य और इंतज़ार की मिठास थी, वह अब डिजिटल युग की गति में कहीं खो गई है।

कागज़ की खुशबू अब डिजिटल नहीं होती, चिट्ठी का दर्द अब संदेशों में नहीं रोता।

ऐसे भी कहा जा सकता है कि

जो लफ़्ज़ दिल से निकलते थे, वो अब टाइप होकर ठंडे हो गए,
जो खत में गिरे आँसू थे, वो अब इमोजी में ढल गए।

आज विश्व डाक दिवस पर हमें याद रखना चाहिए — तकनीक चाहे कितनी भी आगे बढ़ जाए,
पर दिल से लिखी चिट्ठी की स्याही कभी सूखती नहीं।

कभी किसी प्रियजन को कुछ शब्द हाथ से लिखिए — देखिए, आपके लिखे हुए शब्द कैसे उनके दिल में जगह बनाते हैं। क्योंकि — चिट्ठियाँ अब नहीं आतीं, पर यादें अब भी पहुँच जाती हैं।

 

2 comments:

Amit Behal said...

जो सिदक चिट्ठी में लिखे शब्दों को बार-बार पढ़कर मिलता था वह मोबाइल के मैसेज में नहीं मिल सकता ।इस कमबख्त मोबाइल ने चिट्ठियों का युग ही खत्म कर दिया...

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

सही कहा भाई साहब। अत्र कुशलम तत्रअस्तु से शुरू होने वाले पत्र अब कहाँ