दशहरा और रावण दहन : एक पुनर्विचार
लेखक – आचार्य रमेश सचदेवा
हर वर्ष दशहरा के पर्व पर देशभर में रावण का पुतला जलाया जाता है। इस परंपरा
का उद्देश्य बुराई पर अच्छाई की विजय को याद करना है। किंतु एक गंभीर प्रश्न उठता
है – क्या हर साल रावण को जलाना
ज़रूरी है? क्या केवल रावण
को जलाने से बुराई का अंत हो जाएगा?
रावण का पुतला मात्र एक कागज़, लकड़ी और
पटाखों का ढांचा है। उसे जलाकर हम अपने मन को तसल्ली देते हैं कि हमने बुराई पर
विजय प्राप्त कर ली। परंतु वास्तविकता यह है कि असली रावण हमारे भीतर और समाज में
जीवित है।
- हमारे
भीतर का अहंकार,
- क्रोध और
द्वेष,
- लोभ और
लालच,
- असत्य और
छल–कपट –
यही आज के रावण हैं। इनका अंत केवल पुतला जलाने से नहीं होगा।
आज का समाज भ्रष्टाचार, हिंसा, असमानता और स्वार्थ से जूझ रहा है। बच्चियों के प्रति अपराध, पर्यावरण का शोषण, जाति–धर्म के नाम पर घृणा – ये सब आधुनिक रावण के रूप हैं। यदि हम इन्हें नष्ट
करने का संकल्प नहीं लेते, तो केवल पटाखों
से बने पुतले को जलाने से कोई परिवर्तन संभव नहीं।
राम की विजय केवल रावण को परास्त करने की घटना नहीं थी, बल्कि यह सत्य, मर्यादा और
धर्म की स्थापना का प्रतीक थी। राम ने यह संदेश दिया कि मनुष्य को अपने भीतर और
बाहर दोनों तरह की बुराइयों का सामना करना चाहिए।
यदि हम अपने जीवन में सत्य, करुणा, ईमानदारी और सहयोग को स्थान देंगे, तभी बुराई का अंत होगा।
इसलिए यह प्रश्न हमारे सामने खड़ा है – क्या हमें हर साल रावण जलाना चाहिए?
उत्तर है – हाँ, परंतु वह रावण नहीं जो मैदानों में खड़ा होता है, बल्कि वह रावण जो हमारे भीतर बैठा है।
हर वर्ष हमें आत्ममंथन करना चाहिए और अपने भीतर की एक बुराई को समाप्त करने का
संकल्प लेना चाहिए। तभी दशहरा पर्व का वास्तविक अर्थ साकार होगा।

2 comments:
Jai Shree Ram 🙏
बहुत अच्छा लेख लिखा है ।
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