दीप जलें मुस्कान के
(दोहा संग्रह)
लेखक: आचार्य रमेश सचदेवा
मुस्कानों के दीप को, हर दिल में भर लायें।
ऐसी प्यारी दीवाली, मिलजुल सब मनायें।।
छोटे-बड़े का भेद क्या, जब सबको अपनायें।
प्रेम बाँटते दीप हों, द्वेष दूर हटायें।।
जो भूखे हैं राह में, उनको भोजन दें।
सुख-दुख के इस पर्व पर, संग-संग आगे बढ़ें।।
रूठे रिश्तों को मनायें, तो पर्व बने खास।
दीप जलें विश्वास के, बुझे नहीं उजास।।
हारे मन को थाम लें, टूटे को समझायें।
उम्मीदों के दीप से, जीवन रौशन पायें।।
रंग न हो केवल बाहर, रंगें मन के भाव।
खुशियों की रंगोली में, मिटें सभी तनाव।।
सपने जो बिखरे हुए, उनको जोड़ चलें।
हर दीया बनकर जिएं, उजियारा हम छलें।।

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