डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम – सपनों को साकार करने वाला साधक
रात का समय था। शिलांग के सभागार में सैकड़ों विद्यार्थी बैठे थे। मंच पर एक
वृद्ध वैज्ञानिक, जिनके चेहरे पर असीम शांति और आँखों में चमक थी, विद्यार्थियों
से कह रहे थे —
“Dream! Dream! Dream! Dreams transform into thoughts and thoughts result in
action.”
कुछ ही क्षण
बाद वही वैज्ञानिक मंच पर गिर पड़े — यह उनका अंतिम व्याख्यान था।
वह थे — भारत के मिसाइल मैन, भारतरत्न डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम।
उनका जीवन किसी किताब के पन्नों में नहीं,
बल्कि करोड़ों
दिलों में लिखा गया है। एक साधारण नाव चलाने वाले के घर जन्मा बालक, जो सुबह-सुबह
अख़बार बाँटकर अपनी पढ़ाई का खर्च निकालता था, आगे चलकर उस भारत का
राष्ट्रपति बना, जिसे उसने विज्ञान और आत्मनिर्भरता की दिशा दिखाई।
रामेश्वरम की गलियों में जन्मा वह बालक जब स्कूल
में बैठता था, तो शिक्षक के हर शब्द को ऐसे आत्मसात करता मानो जीवन का कोई
मंत्र सुन रहा हो। वह कहता था —
“मुझे उड़ना था, पर मेरे पास
पंख नहीं थे; पर मेरे गुरु ने मुझे उड़ना सिखा दिया।”
यह वाक्य उनके
जीवन का मूल बन गया — शिक्षक ही उड़ान के पहले
पंख होते हैं।
बचपन के उस छोटे से कस्बे में गरीबी थी, लेकिन सपनों की
कोई कमी नहीं। उनके पिता धार्मिक और सादे स्वभाव के व्यक्ति थे, जो बिना दिखावे
के दूसरों की मदद करते थे। यही सेवा भावना आगे चलकर कलाम जी के व्यक्तित्व की
पहचान बनी।
जब जीवन ने उन्हें वायुसेना में चयन न होने का
दुःख दिया, तो उन्होंने हार मानने के बजाय उसे नयी शुरुआत बना लिया। वे कहते थे —
“असफलता मुझे नहीं गिरा सकती,
क्योंकि मैंने
उड़ना सीख लिया है।”
उनके जीवन की
यह सोच ही आगे चलकर उन्हें सफलता के सबसे ऊँचे शिखर पर ले गई।
डॉ. कलाम के भीतर का वैज्ञानिक किसी प्रयोगशाला
में नहीं, बल्कि राष्ट्र के सपनों में जन्मा था। जब उन्होंने ISRO
में कदम रखा,
तब भारत उपग्रह
प्रक्षेपण के क्षेत्र में संघर्षरत था। वे कहते थे —
“अगर किसी राष्ट्र को सशक्त बनना है तो उसे तीन
शक्तियाँ चाहिए — सेना की, अर्थव्यवस्था की और सबसे बढ़कर — ज्ञान की।”
उसी ज्ञान की
शक्ति से उन्होंने भारत को अंतरिक्ष और मिसाइल शक्ति के क्षेत्र में आत्मनिर्भर
बनाया।
उनकी अगुवाई
में रोहिणी उपग्रह का प्रक्षेपण हुआ, और भारत ने
अंतरिक्ष की ओर पहला आत्मनिर्भर कदम बढ़ाया।
उनके जीवन का सबसे गौरवपूर्ण क्षण वह था जब 1998 में पोखरण की धरती पर भारत
ने परमाणु शक्ति का प्रदर्शन किया। देश के हर कोने में सिर्फ एक नाम गूंजा — डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम!
वह दृश्य केवल
वैज्ञानिक सफलता का नहीं, बल्कि आत्मगौरव का प्रतीक था। उन्होंने भारत को यह विश्वास
दिलाया कि “हम किसी से कम नहीं।”
राष्ट्रपति बनने के बाद भी कलाम जी में वैज्ञानिक और शिक्षक दोनों जीवित रहे।
राष्ट्रपति भवन
में बच्चों के पत्रों का ढेर लगा रहता था, और वे हर पत्र का उत्तर देते थे।
वे बच्चों से
कहते — “बड़े सपने देखो, क्योंकि बड़े सपने ही बड़े लोगों को जन्म देते हैं।”
उनकी यह सरलता
और आत्मीयता उन्हें जनता के बीच “People’s President” बना गई।
उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं —
‘Wings of Fire’, ‘Ignited Minds’, ‘India 2020’ — ये केवल
पुस्तकें नहीं, बल्कि पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शन हैं।
एक जगह
उन्होंने लिखा —
“जब आप अपना सर्वश्रेष्ठ किसी कार्य में लगाते हैं, तो ईश्वर स्वयं उस कार्य को
सफल बनाने में सहयोग करता है।”
उनकी लेखनी में
विज्ञान की दृढ़ता और अध्यात्म की विनम्रता दोनों झलकती थी।
डॉ. कलाम को सैकड़ों पुरस्कार मिले —
पद्म भूषण,
पद्म विभूषण,
और देश का
सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न।
पर जब उनसे
पूछा गया कि “कौन-सा सम्मान आपके लिए सबसे बड़ा है?”
तो उन्होंने
मुस्कुराते हुए कहा — “जब कोई छात्र कहता है कि मैंने आपकी किताब से प्रेरणा ली —
वही मेरा सबसे बड़ा पुरस्कार है।”
वे केवल भौतिक विकास की बात नहीं करते थे,
बल्कि मानवीय मूल्यों के विकास पर भी बल देते थे। उनका मिशन 2020 केवल आर्थिक प्रगति का नहीं, बल्कि नैतिकता और शिक्षा से
सम्पन्न भारत का स्वप्न था। वे कहते थे — “विकसित भारत का निर्माण विज्ञान और मूल्य,
दोनों के संगम
से होगा।”
27 जुलाई 2015 की वह शाम जब
उन्होंने अंतिम सांस ली, तब भी वे मंच पर थे, विद्यार्थियों के बीच,
शिक्षा के अपने
प्रिय विषय पर बोलते हुए। यह केवल मृत्यु नहीं थी, बल्कि
एक दीपक का बुझना ताकि हजारों दीप जल सकें।
आज भी जब कोई बच्चा किताबों के पन्नों के बीच सपनों का संसार खोजता है,
तो कहीं न कहीं
डॉ. कलाम मुस्कुराते हैं। जब कोई शिक्षक अपने विद्यार्थियों को प्रेरणा देता है,
तो उसमें कलाम
की आत्मा बसती है। उनका जीवन यह सिखाता है कि —
“कठिनाइयाँ जीवन का हिस्सा
हैं, लेकिन हारना विकल्प नहीं।”
“सपनों को
लक्ष्य बनाओ, और लक्ष्य को जीवन।”
डॉ. अब्दुल कलाम एक व्यक्ति नहीं, एक विचार हैं —
एक ऐसा विचार जो हर विद्यार्थी को ऊँचा सोचने, सच्चा कर्म करने और देश से
प्रेम करने की प्रेरणा देता है। उनकी स्मृति में हर 15 अक्टूबर न केवल जन्मदिवस है, बल्कि प्रेरणा दिवस है — एक याद दिलाने वाला दिन कि
“जो आकाश को
छूने का साहस रखते हैं, उन्हें धरती रोक नहीं सकती।”
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