पाठ योजना: शिक्षक की तैयारी या औपचारिकता?
एक विचारोत्तेजक लेख
✍️आचार्य रमेश सचदेवा
आज के शिक्षा तंत्र में “पाठ योजना” (Lesson
Plan) एक ऐसा शब्द बन गया है, जो या तो केवल निरीक्षण की फाइलों तक सीमित है या फिर
शिक्षकों के लिए एक अनचाहा बोझ। यह प्रश्न स्वाभाविक है —
क्या पाठ योजना वास्तव में
शिक्षण की तैयारी है या केवल एक औपचारिकता?
अगर और मगर की बातें
- अगर शिक्षक को अपनी कक्षा की विविधता का ज्ञान हो, तो वह
समझेगा कि पाठ योजना उसे मार्गदर्शन देती है।
- अगर योजना को केवल लिखने की औपचारिकता न मानकर, शिक्षण की
रणनीति समझा जाए, तो इसका उपयोग बढ़ेगा।
- अगर विद्यालय
प्रशासन योजनाओं का अवलोकन, जांच और सुधार करे, तो शिक्षक
इसे गंभीरता से लेंगे।
- मगर जब योजना
लिखी तो जाती है, पर कोई उसे पढ़ता तक नहीं, तो शिक्षक
इसे समय की बर्बादी मानते हैं।
- अगर मूल्यांकन
और फीडबैक की व्यवस्था हो, तो पाठ योजना एक सशक्त औजार बन सकती है।
अधिकतर शिक्षक इसे व्यर्थ क्यों मानते हैं?
- निरीक्षण की कमी: अधिकतर
स्कूलों में पाठ योजनाओं की केवल औपचारिक जांच होती है, उनका कोई व्यवहारिक अवलोकन नहीं होता।
- कोई प्रतिक्रिया नहीं: योजनाओं
पर ना तो सुझाव मिलते हैं, ना ही
उन्हें सुधारने की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
- समय का अभाव: परीक्षा,
मूल्यांकन, रिपोर्ट और सह-शैक्षणिक गतिविधियों के बीच पाठ योजना बनाना केवल अतिरिक्त कार्य लगता है।
- व्यवहारिक उपयोगिता पर संदेह: जब योजना केवल फॉर्म भरने का काम बन जाए, तो
शिक्षकों को उसका शैक्षणिक
महत्व नजर नहीं आता।
बिना निरीक्षण और मूल्यांकन के यह समय की बर्बादी है
पाठ योजना केवल तभी प्रभावी होती है जब उसका
मूल्यांकन हो, उस पर संवाद हो, और शिक्षक को उसकी प्रतिक्रिया
मिले। अन्यथा यह केवल एक दस्तावेज बनकर रह जाती है — ना छात्रों को लाभ होता है,
ना शिक्षक को
संतोष।
जब स्कूल में प्रधानाचार्य, कोऑर्डिनेटर या
पर्यवेक्षक कक्षा अवलोकन करते हैं, और पाठ योजना से मिलान करते
हैं, तब ही यह प्रक्रिया सार्थक बनती है। अन्यथा यह शिक्षकों की
रचनात्मकता का दम घोंटने वाला कार्य बन जाता है।
भारतीय कक्षा की विविधता – एक शिक्षक की सबसे बड़ी चुनौती
भारतीय कक्षाओं में एक समान छात्र नहीं होते। हर कक्षा एक मिश्रण होती है:
- ईश्वर-प्रदत्त
प्रतिभावान (God gifted)
- विज्ञानी
और टॉपर (Scholar)
- मेहनती और
नियमित (Laborious)
- रटने वाले
(Crammer)
- निंदा करने
वाले (Critic)
- संसाधनों
से युक्त (Resourceful)
- वंचित और
घरेलू जिम्मेदारियों में उलझे हुए (Bound by circumstances)
इस स्थिति में क्या एक पाठ योजना सबके लिए उपयुक्त हो सकती है?
नहीं, कतई नहीं।
तो सवाल उठता है कि समाधान क्या है?
ऐसे में एक लचीली और बहुस्तरीय योजना ही कारगर सिद्ध हो सकती है
एक कुशल शिक्षक को चाहिए कि वह अपनी पाठ योजना को ऐसा बनाए:
- जिसमें मुख्य लक्ष्य स्पष्ट हों,
- लेकिन प्रस्तुतीकरण में लचीलापन हो।
- तेज
छात्रों के लिए उच्च स्तरीय प्रश्न,
- कमजोर
छात्रों के लिए सहायक गतिविधियाँ,
- समूह कार्य,
श्रव्य-दृश्य सामग्री, अनुभवजन्य
प्रयोग — सब कुछ उसमें शामिल हो।
- गृह कार्य
का बोझ कम हो और कक्षा में अधिक अभ्यास हो, ताकि घर पर पढ़ाई न कर पाने वाले छात्र भी सीख सकें।
शिक्षक इसे औपचारिकता नहीं, शिक्षा का हिस्सा बनाएं
पाठ योजना केवल एक दस्तावेज नहीं, शिक्षण का
पूर्वाभ्यास है। यह शिक्षक को मानसिक रूप से तैयार करती है, समय का बेहतर
प्रबंधन सिखाती है और कक्षा को प्रभावशाली बनाती है।
परंतु जब तक विद्यालय इसे केवल एक फॉर्म भरने का काम समझेगा, और शिक्षक इसे बोझ मानते रहेंगे — तब तक यह न तो छात्रों
की मदद कर पाएगी, न ही शिक्षा के स्तर को ऊपर उठा पाएगी।
इसलिए आवश्यक है कि स्कूल प्रशासन और शिक्षक दोनों इसे समझें, प्रयोग करें, संवाद करें और इसे विकसित
करें। तभी "पाठ योजना" एक औपचारिकता से निकलकर शिक्षण की
आत्मा बन पाएगी।