मेरी माँ के हाथ
लेखक : आचार्य रमेश सचदेवा
मेरी माँ के हाथ —
ये सिर्फ हाथ
नहीं,
मेरी पूरी
ज़िंदगी की किताब हैं।
सुबह की पहली किरण से पहले,
जब गाँव की
गलियों में अभी सन्नाटा होता था,
तो चूल्हे पर
रोटियाँ सेंकते
उन हाथों से
उठता धुआँ,
मेरे सपनों तक
पहुँचकर कहता,
“बेटा, उठ जा, तेरे लिए
नाश्ता तैयार है।”
मेरी माँ के हाथ —
झाड़ू और पोछा
पकड़ते–पकड़ते
कितनी बार
छालों से भर गए,
पर कभी शिकायत
न की।
घर चमकता रहा,
मगर उनके हाथ
दिन-ब-दिन खुरदरे होते गए।
मेरी माँ के हाथ —
जब मैं बीमार
पड़ा,
तो वही हाथ
मेरे माथे पर दवा लगाते,
काढ़े का कड़वा
स्वाद पिलाते,
और सहलाकर कहते,
“तू ठीक हो
जाएगा, भगवान बड़ा करुणामय है।”
उन हाथों की
छुअन में
हर दवा से
ज़्यादा असर था।
मेरी माँ के हाथ —
कभी डाँट भी
खाते मैंने।
गलती करने पर
वही हाथ उठे,
कभी चपत पड़ी,
कभी कान खींचा।
उस दर्द में भी
छुपा था डर —
कि मेरा बच्चा
बिगड़ न जाए।
मेरी माँ के हाथ —
रात को मेरी
किताबें सँभालते,
कभी
सिलाई–कढ़ाई करते,
कभी कहानी
सुनाते।
उन हाथों से
बुनी कहानियों में
राजकुमार भी था, परियों का महल
भी,
और एक सिखावन
भी —
कि “सच्चाई से बढ़कर कुछ नहीं।”
मेरी माँ के हाथ —
जब थककर घर
लौटता,
तो वही हाथ
मेरे सिर पर फिरते,
और सारे दुख
उड़ जाते।
उन हाथों की
गोद में
मुझे आज तक
सबसे प्यारा स्वर्ग मिलता है।
मेरी माँ के हाथ
प्यार भी हैं, दुलार भी,
दवा भी हैं, दुआ भी,
डाँट भी हैं, संस्कार भी।
अगर मैं आज कुछ
हूँ,
तो सिर्फ़ मेरी
माँ के हाथों की बदौलत हूँ।

14 comments:
Bahut badhiya 👌
मातृ चरणों में वंदन...💐🙏
मेरी मां के हाथ
वाह जी वाह बहुत खुब 🙏🙏
मां वरगा घणछांवां बुटा होर ना दुनिया ऊते मिलना
Very touching
शानदार रचना........................
Heart touching lines...
MERI MAA KE HATH
MAA JAISA KOI NAHI
aryasudesh02@gmail.com
धन्यवाद जी
धन्यवाद जी
धन्यवाद जी
धन्यवाद जी
धन्यवाद जी
धन्यवाद जी
धन्यवाद जी
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