सम्मान और जवाबदेही : शिक्षक दिवस का असली संदेश
लेखक : आचार्य रमेश सचदेवा
शिक्षक दिवस हर वर्ष 5 सितम्बर को हमें यह स्मरण कराता है कि शिक्षक
समाज का निर्माणकर्ता है। वह केवल पाठ्यपुस्तक का ज्ञान ही नहीं देता, बल्कि चरित्र, अनुशासन और जीवन-दृष्टि भी
गढ़ता है। इसी कारण उसे राष्ट्रनिर्माता कहा जाता है। समाज जब शिक्षक को सम्मान
देता है, तो दरअसल वह अपनी अगली पीढ़ी के भविष्य को सम्मानित कर रहा होता है।
परंतु एक प्रश्न यहाँ खड़ा होता है—यदि शिक्षक का सम्मान
आवश्यक है तो उसकी आलोचना और जवाबदेही क्यों नहीं?
वास्तविकता यह है कि सम्मान और जवाबदेही
एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। सम्मान का अर्थ अंध-भक्ति नहीं है। यदि
शिक्षक अपने दायित्वों से विमुख होता है, बच्चों के साथ अन्याय करता है या अपनी भूमिका से
समझौता करता है, तो उसकी आलोचना और जवाबदेही दोनों ही आवश्यक हो जाते हैं।
शिक्षक दिवस का दिन हमारे समाज के लिए केवल एक औपचारिकता न
हो, बल्कि आत्ममंथन का दर्पण बने। आज हर ओर मंच सजते हैं, फूलमालाएँ चढ़ती हैं और
भाषण होते हैं, परंतु असली सवाल पीछे छूट जाता है—क्या शिक्षक आज भी वही गुरु है, जो समाज का मार्गदर्शक था, या केवल एक ट्यूटर बनकर रह
गया है?
बच्चों की भीड़ को कोचिंग सेंटरों में धकेलने वाला शिक्षक, केवल अंकों का सौदागर बन
गया है। किताबें तो पढ़ाई जाती हैं, लेकिन जीवन के मूल्य, संस्कृति और अनुशासन छूटते
जा रहे हैं। यह दर्द केवल शिक्षा का नहीं, पूरे समाज का है। क्योंकि जब शिक्षक अपना आदर्श
खो देता है, तो पीढ़ियाँ भटकने लगती हैं।
सम्मान जरूरी है, क्योंकि शिक्षक के बिना ज्ञान की रोशनी संभव
नहीं। लेकिन केवल सम्मान पर्याप्त नहीं है। जवाबदेही भी उतनी ही आवश्यक है। यदि डॉक्टर गलती करे तो
मरीज की जान जाती है, यदि इंजीनियर लापरवाह हो तो इमारत ढह जाती है, पर यदि शिक्षक अपने कर्तव्य
से विमुख हो जाए तो पूरे राष्ट्र का भविष्य डगमगा जाता है। यह सबसे बड़ी त्रासदी
है।
आज की सच्चाई यह है कि समाज भी दोषी है। हम शिक्षक को पूजने
की बातें तो करते हैं, पर उसकी दशा पर मौन रहते हैं। न वेतन समय पर, न सम्मान का व्यवहार, और फिर आश्चर्य करते हैं कि
क्यों शिक्षक ट्यूटर बन गया। यदि हम चाहते हैं कि शिक्षक आदर्श बने, तो हमें भी आदर्श
परिस्थितियाँ देनी होंगी।
लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि शिक्षक अपनी जिम्मेदारी से
मुक्त हो जाए। सम्मान तभी सार्थक है जब वह जवाबदेही से जुड़ा हो। एक आदर्श शिक्षक
को खुद को आईना दिखाना होगा—क्या वह अपने विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा है या केवल
नौकरी निभा रहा है? समाज को भी पूछना होगा—क्या हम केवल भाषणों और पुरस्कारों
से शिक्षक दिवस मनाकर कर्तव्य पूरा कर लेते हैं?
सच यही है—फूलों से ज्यादा जरूरी आईना है। आदर
से ज्यादा जरूरी आलोचना है। और सम्मान से ज्यादा जरूरी जवाबदेही है।
जब तक शिक्षक वास्तव में शिक्षक नहीं बनेगा और
समाज वास्तव में समाज नहीं बनेगा, तब तक शिक्षा केवल डिग्रियाँ बाँटने का माध्यम रहेगी।
अत: शिक्षक दिवस पर हमें दोहरी जिम्मेदारी निभानी होगी—
एक ओर उत्कृष्ट शिक्षकों को सम्मानित करना और
दूसरी ओर यह सुनिश्चित करना कि हर शिक्षक वास्तव में शिक्षक बने, न कि केवल ट्यूटर। यही इस
दिवस का असली संदेश है और यही शिक्षा के उज्ज्वल भविष्य की कुंजी।

No comments:
Post a Comment