कर नियम, पोर्टल की तकनीकी दिक्कतें और समयसीमा का दबाव
✍️ लेखक – आचार्य रमेश सचदेवा
सरकार हर वर्ष
करदाताओं और चार्टर्ड अकाउंटेंट्स (CAs) के सामने लुभावने सपने पेश करती है कि कर प्रणाली
सरल हो रही है और डिजिटल पोर्टल पूरी तरह सक्षम है। परंतु सच्चाई यह है कि ये वादे
केवल आकड़ों की बाज़ीगरी तक सीमित हैं। जमीनी हकीकत में करदाता और पेशेवर आज भी तकनीकी असफलताओं, जटिल नियमों और अव्यावहारिक
समयसीमाओं की गिरफ्त में फंसे हैं।
सरकार की कठोर सोच और करदाताओं की पीड़ा
आम जनता और CAs जब ITR फाइलिंग की समय सीमा बढ़ाने की मांग करते हैं तो सरकार
उनकी आवाज़ को सुनने के बजाय अनसुना कर देती है। इससे यह आभास होता है कि सरकार का लक्ष्य करदाताओं की
सुविधा नहीं, बल्कि उनसे फाइन वसूलने की लालसा है। यह रवैया लोकतंत्र की आत्मा पर एक गहरा धब्बा है।
तकनीकी और व्यवस्थागत वास्तविकताएँ
- सॉफ्टवेयर अपडेट का सच – ITR पोर्टल में किए गए सुधार और बदलाव स्वचालित (Automatic) नहीं होते। इन्हें लागू करने और स्थिर करने में समय लगता है।
लेकिन सरकार यह मानकर चलती है कि आदेश देते ही सबकुछ दुरुस्त हो जाएगा।
- तारतम्य की कमी – समय सीमा बढ़ाने का निर्णय केवल आयकर विभाग का नहीं
होता। इसमें
CBDT, वित्त मंत्रालय, सॉफ्टवेयर सपोर्ट कंपनियों और बैंकिंग नेटवर्क का भी समन्वय होना आवश्यक है। दुर्भाग्य से यह तारतम्य
अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
- सिर्फ आदेश और सज़ा का
रवैया – सरकार का काम केवल आदेश देना, जुर्माना लगाना या सज़ा देना नहीं होना चाहिए। उसका
असली काम है
व्यवस्था को सरल, पारदर्शी और विश्वसनीय बनाना।
पोर्टल की दुर्दशा और जनता की विवशता
- हर वर्ष लाखों करदाता
पोर्टल की खराबी के कारण लॉगिन
समस्या, OTP विफलता, अपलोड एरर
और सर्वर डाउन जैसी बाधाओं से जूझते
हैं।
- अंतिम दिनों में तो
पोर्टल पूरी तरह रेंगने लगता है, जिससे सही-सही ITR फाइल करना
लगभग असंभव हो जाता है।
- इसके बावजूद सरकार कठोर डेडलाइन पर अड़ी रहती है, मानो
करदाता कोई अपराधी हों।
नाकामियों को उजागर करते आँकड़े
- FY
2023–24 तक लगभग 7.28 करोड़ ITR दाख़िल हुए, लेकिन लाखों करदाता अंतिम सप्ताह में तकनीकी
गड़बड़ियों से परेशान रहे।
- एक सर्वेक्षण के
अनुसार, 49% करदाता तकनीकी समस्याओं के कारण समय पर ITR दाख़िल
नहीं कर सके।
- लगभग 1.2 मिलियन करदाताओं को अब तक रिफंड नहीं मिला। यह सरकार की प्रणालीगत विफलता का स्पष्ट उदाहरण है।
रचनात्मक और व्यवहारिक सुझाव
- लचीली समय सीमा – कम से कम 45 दिन की अतिरिक्त ग्रेस
अवधि को व्यवस्था का स्थायी हिस्सा बनाया जाए।
- मजबूत पोर्टल – सर्वर क्षमता को 10 करोड़
यूज़र्स तक एक साथ झेलने लायक बनाया जाए।
- सरल नियमावली – छोटे करदाताओं (सैलरीधारी, पेंशनभोगी, छोटे
व्यापारी) के लिए अलग सरल फॉर्म उपलब्ध हो।
- तारतम्ययुक्त निर्णय – समय सीमा बढ़ाने या नियम संशोधन से पहले संबंधित
विभागों और तकनीकी संस्थाओं से पूर्ण परामर्श लिया जाए।
- जन-भागीदारी – करदाताओं और CAs के
सुझावों को नीतिगत सुधारों में शामिल किया जाए।
- हेल्पलाइन और लोकल
सहायता केंद्र –
हर ज़िले में त्वरित समाधान केंद्र स्थापित
किए जाएँ।
सरकार के लिए चेतावनी
लोकतांत्रिक
सरकार का काम केवल आदेश देना या जुर्माना लगाना नहीं है, बल्कि नागरिकों की वास्तविक परिस्थितियों को समझना और उनकी समस्याओं का समाधान
करना है। ITR पोर्टल की बार-बार की विफलता, जटिल नियम और
अव्यावहारिक समयसीमा इस बात के प्रमाण हैं कि
सरकार करदाताओं के प्रति संवेदनशील नहीं रही।
यदि अब भी
सरकार ने आंकड़ों की बाज़ीगरी छोड़कर जमीनी सच्चाई पर आधारित
सुधार नहीं किए, तो यह कर प्रणाली करदाताओं
के विश्वास को तोड़ेगी और लोकतंत्र की गरिमा को
कलंकित करेगी।
करदाता देश के शत्रु नहीं, बल्कि राष्ट्र
निर्माण के आधार स्तंभ हैं – उन्हें अनसुना करना और दंडित करना एक अन्यायपूर्ण शासन व्यवस्था का द्योतक है।
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2 comments:
वही व्यवस्था चलती है जो सुगम व व्यवहारिक हो और बेफिजूल बोझ से मुक्त हो...
धन्यवाद जी
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