✦ सारागढ़ी की लड़ाई : शौर्य और बलिदान की अमर गाथा ✦
12 सितम्बर 1897 का दिन भारतीय इतिहास में अमर है। इस दिन 36वीं सिख रेजिमेंट के केवल 21 वीर सैनिकों ने लगभग 10,000 अफगान कबीलों से सामना किया और अंतिम सांस तक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
सीमा पर स्थित सारागढ़ी चौकी गुलिस्तान और लॉकहार्ट किलों के बीच संचार का माध्यम थी। जब दुश्मनों ने इस चौकी पर हमला किया तो वहां तैनात 21 सिख सैनिकों ने असंभव प्रतीत होने वाली इस लड़ाई को स्वीकार किया। परिणामस्वरूप उन्होंने लगभग 600 शत्रुओं का अंत किया और हजारों को घायल कर दिया। इस बलिदान ने अन्य किलों को समय पर तैयारी का अवसर दिया और भारत के वीर इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया।
उनके इस अदम्य साहस के लिए सभी 21 सैनिकों को मरणोपरांत उस समय का सर्वोच्च सैन्य सम्मान “इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट” प्रदान किया गया।
आज भी भारतीय सेना इस दिन को “सारागढ़ी दिवस” के रूप में मनाती है। यह दिवस हमें सिखाता है कि—
- कर्तव्य सबसे ऊपर है।
- साहस का माप संख्या से नहीं, बल्कि आत्मबल से होता है।
- बलिदान ही अमरता का मार्ग है।
1. आज सारागढ़ी स्थल पर क्या है?
सारागढ़ी का मूल चौकी किला अब अस्तित्व में नहीं है, परन्तु उस स्थान पर एक गुरुद्वारा और स्मारक बनाया गया है।
इसे “गुरुद्वारा सारागढ़ी” कहा जाता है और यह स्थान आज भी वीरता और बलिदान का प्रतीक माना जाता है।
यहाँ हर वर्ष 12 सितम्बर को “सारागढ़ी दिवस” बड़े सम्मान और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। भारतीय सेना के सैनिक, खासकर सिख रेजिमेंट, यहां आकर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
2. आज़ादी के बाद भारत सरकार ने क्या किया?
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी इस युद्ध की स्मृति को जीवित रखने के प्रयास किए गए।
सिख रेजिमेंट के प्रशिक्षण केंद्र (रामगढ़, झारखंड) में “सारागढ़ी गुरुद्वारा” बनाया गया है, जहाँ हर साल स्मृति दिवस आयोजित होता है।
भारतीय डाक विभाग ने सारागढ़ी बलिदान पर डाक टिकट जारी किया।
सेना और केंद्र सरकार ने मिलकर इस गाथा को पाठ्यक्रमों और सैन्य इतिहास में स्थान दिया।
पंजाब और हरियाणा की सरकारें भी इस दिन पर श्रद्धांजलि सभाएँ आयोजित करती हैं।
3. सारागढ़ी पर बनी फ़िल्म और श्रृंखलाएँ
इस महान गाथा को लेकर कई प्रयास हुए—
फ़िल्म “केसरी” (2019) – अक्षय कुमार और परिणीति चोपड़ा अभिनीत इस फ़िल्म ने 21 सिख सैनिकों की शौर्यगाथा को बड़े परदे पर जीवंत किया। इसने सारागढ़ी की लड़ाई को जनता तक लोकप्रिय रूप में पहुँचाया।
टेलीविज़न श्रृंखला “21 सरफरोश: सारागढ़ी 1897” (2018) – यह टीवी सीरीज़ डिस्कवरी जीत चैनल पर प्रसारित हुई थी। इसमें मोहित रैना ने मुख्य भूमिका निभाई और इसमें विस्तार से इस युद्ध का चित्रण किया गया।
इसके अतिरिक्त पंजाबी और हिन्दी साहित्य में भी इस युद्ध पर कई कविताएँ, गीत और लेख लिखे गए हैं।
सारागढ़ी की भूमि आज भी भारतीय वीरता की पवित्र धरोहर है। आज़ादी के बाद सरकार और समाज ने इसे याद रखने के कई प्रयास किए, और फ़िल्मों व धारावाहिकों के माध्यम से यह प्रेरक गाथा नई पीढ़ी तक पहुँची।
सारागढ़ी की लड़ाई केवल एक युद्ध नहीं, बल्कि वीरता, साहस और बलिदान का अमर संदेश है। इन 21 सिखों ने जो शौर्य दिखाया वह आज भी हर भारतीय को प्रेरित करता है और आने वाली पीढ़ियों को सदैव यह सीख देगा कि “कर्तव्य के आगे मृत्यु भी छोटी है।”
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Salute from the Heart
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