Wednesday, June 25, 2025

शिक्षक भी एक इंसान हैं — उन पर भी अपेक्षाओं का असहनीय बोझ है


 शिक्षक भी एक इंसान हैं — उन पर भी अपेक्षाओं का असहनीय बोझ है

✍️ लेखक: आचार्य रमेश सचदेवा

जब हम "शिक्षक" शब्द सुनते हैं, तो हमारे मन में एक आदर्श छवि उभरती है — अनुशासित, ज्ञानवान, शांतचित्त, और सदैव प्रेरित करने वाले व्यक्तित्व की। लेकिन क्या कभी हमने यह सोचा है कि उस शिक्षक के भीतर भी एक मनुष्य होता है — जिसकी अपनी भावनाएँ, सीमाएँ, संघर्ष और थकान होती है?

आज के युग में शिक्षक पर केवल शैक्षणिक नहीं, बल्कि मानसिक, सामाजिक, तकनीकी, प्रशासनिक और भावनात्मक दायित्वों का ऐसा बोझ है, जिसे समझना और स्वीकार करना बहुत आवश्यक है।

1. पाठ्यक्रम से अधिक अपेक्षाएं

शिक्षक से अपेक्षा की जाती है कि वह:

  • हर बच्चा समझे, अच्छा अंक लाए
  • सिलेबस समय पर पूरा हो
  • बोर्ड रिज़ल्ट 100% हो
  • बच्चों की अनुशासनहीनता भी स्वयं संभालें
  • और साथ ही प्रशासनिक कार्यों (डाटा एंट्री, UDISE, पोर्टल अपडेट्स) में भी दक्ष रहें

यह सब करते हुए वह खुद कब थकते हैं, कब तनाव में होते हैं — कोई नहीं पूछता।

2. तकनीकी दबाव और नवीनीकरण की होड़

हर महीने नई ऐप, पोर्टल, रिपोर्टिंग टूल — शिक्षक को अब न केवल पढ़ाना है, बल्कि तकनीकी रूप से भी अपडेट रहना है। चाहे कितनी भी उम्र हो, चाहे डिजिटल एक्सपोज़र न हो — कोई सहारा नहीं, केवल अपेक्षा है कि वह "सब कर लें"।

3. भावनात्मक उपेक्षा और अभिभावकों की आलोचना

जब बच्चे अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो श्रेय केवल छात्र या कोचिंग संस्थान को मिलता है। लेकिन जब प्रदर्शन गिरता है — उंगलियाँ शिक्षक पर उठती हैं।      
"आप पढ़ा नहीं पा रहे", "हम तो फीस भर रहे हैं, परिणाम कहां है?"    
शिक्षक की भावना, मेहनत और मानवीय त्रुटियों की कोई कद्र नहीं।

4. पारिवारिक जीवन की उपेक्षा

कभी-कभी शिक्षक के पास अपने ही बच्चों को समय देने का अवसर नहीं होता। छुट्टियाँ नहीं, त्योहारों पर ड्यूटी, परीक्षा मूल्यांकन, प्रशिक्षण — क्या हम भूल जाते हैं कि यह शिक्षक भी एक पिता, एक माता, एक बेटा/बेटी है?

5. वेतन और सम्मान में अंतर

निजी विद्यालयों में शिक्षकों को न्यूनतम वेतन दिया जाता है, पर उनसे अधिकतम प्रदर्शन की अपेक्षा की जाती है।    
सरकारी स्कूलों में वेतन भले अच्छा हो, पर कार्य बोझ और सामाजिक अपेक्षाएँ कई गुना अधिक हैं।
समाज में "शिक्षक" का सम्मान केवल भाषणों में रह गया है — वास्तविकता में नहीं।

समाधान की दिशा

  1. अपेक्षाएं सीमित करेंहर शिक्षक को भगवान मानकर उस पर बोझ डालना बंद करें।
  2. संवाद स्थापित करेंशिक्षक से भी पूछें, "आप कैसे हैं?"
  3. शिक्षक सहायता नीतिमानसिक स्वास्थ्य, तकनीकी सहयोग और प्रशिक्षण के लिए अलग सेल बने
  4. प्रेरणास्पद वातावरणजहां शिक्षक अपने आप को केवल "कार्यकर्ता" नहीं बल्कि "मार्गदर्शक" समझें
  5. शिक्षक दिवस पर सिर्फ माला न पहनाएँ — उनका समय, वेतन और सम्मान सुधारें

अब हम सब यह जान ही गए है कि शिक्षक मशीन नहीं, एक संवेदनशील मनुष्य है — जो आपके बच्चों को जीवन की राह सिखाता है, जो अपना व्यक्तिगत सुख त्याग कर बच्चों के भविष्य को संवारता है, जो स्वयं चुप रहकर दूसरों को बोलना सिखाता है।

तो आइए, समाज मिलकर कहे —

"शिक्षक भी एक इंसान हैं — और उन्हें समझना, सम्मान देना हमारा उत्तरदायित्व है।

27 comments:

Anonymous said...

Very True sir,Apne ek samanya sikshak ka dard bahut hi kam sando me kah diya hai.congratulations

Anonymous said...

एक शिक्षक की पीड़ा का मार्मिक वर्णन किया है आपने सर l साधुवाद

Anonymous said...

आपने बिल्कुल सही कहा है

Anonymous said...

Unremarkable

Anonymous said...

Right said . God bless you.❤️

Anonymous said...

Salujapk2@gmail.com

Roomana said...

बिलकुल, "शिक्षक भी एक इंसान हैं" — यह वाक्य जितना साधारण लगता है, उतना ही गहरा सच छुपाए हुए है। एक शिक्षक से हर दिन आदर्श व्यवहार, पूर्ण समर्पण, अकाट्य धैर्य और हर छात्र की समझदारी की जिम्मेदारी की उम्मीद की जाती है — मानो वो कोई त्रुटिहीन मशीन हों।

लेकिन क्या हमने कभी सोचा कि जो व्यक्ति हर बच्चे के भविष्य को संवारता है, उसे खुद कब संवारने का समय मिलता है? जब शिक्षक थकता है, टूटता है या सवाल करता है — तो उसे 'कमज़ोर' कहा जाता है, न कि 'इंसान'।

हम भूल जाते हैं कि शिक्षक सिर्फ पाठ नहीं पढ़ाते, वे अपने जीवन से शिक्षा देते हैं — पर अगर वो खुद हर पल दबाव में रहें, तो वे क्या संप्रेषित करेंगे? हमें एक ऐसी प्रणाली की ज़रूरत है जो शिक्षक को सिर्फ उत्तरदायित्व न दे, बल्कि सहयोग, सम्मान और सहानुभूति भी दे।

शिक्षक अगर थामे रहेंगे तो ही समाज टिकेगा। आइए, उन्हें इंसान समझें — मशीन नहीं।

Anonymous said...

Truly said Sir
Thank you so much for considering us humans.

A teacher is indeed a human being but we are treated as Robots.
Teachers' are not effected by Covid
They're also not affected by rain or heatwaves;
In many of the institutions I've seen teachers are working on holidays like they don't have any right on holidays.

But still the Private Teachers' community are compelled to work in a meagre salary and with no other benefits as such because Teachers find it very difficult to switch their carrier in any other field.
They always think about what others will say and in this manner they're trapped in the scenario.

Anonymous said...

Very true Sir🙏

Anonymous said...

Excellent sir. Looking forward for more like this.

Amit Behal said...

बिल्कुल सही कहा बड़े भाई...समाज और सरकार नैतिकता और आदर्श की उम्मीद भी अध्यापक से ही करते हैं और इन्हीं में से कई स्वार्थी लोग ऐसी स्थितियां भी पैदा कर देते हैं जिससे अध्यापक नैतिकता और आदर्श के रास्ते पर चल ही ना पाए...अध्यापक वर्ग की भी अपनी कमियां इस पवित्र पेशे को दागदार बना रही हैं🙏

JK Agrawal said...

Undoubtedly true!

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks a lot.

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

आपका तहदिल से आभार

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

शुक्रिया जी

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks a lot.

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks a lot.

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks a lot.

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

बहुत बहुत धन्यवाद सुंदर टिप्पणी के लिए

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks a lot.

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks a lot brother.

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks a lot.

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks a lot.

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks a lot.

Dr K S Bhardwaj said...

That's why the teacher is called nation maker.

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Agreed

Anonymous said...

आपले शिक्षक की व्यथा को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है