बैंक और बीमा पेंशनधारियों का दर्द: पेंशन अपडेशन की अनदेखी कब तक?
आचार्य रमेश सचदेवा
देश के आर्थिक ताने-बाने को सुदृढ़ करने में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने
वाले बैंक और बीमा क्षेत्र के सेवानिवृत्त कर्मचारी आज स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। वर्षों से पेंशन अपडेशन की मांग कर
रहे इन पेंशनधारियों की आवाज़ें, अब तक सरकार और संबंधित विभागों की फाइलों में दबकर रह गई
हैं।
बैंक
पेंशनधारियों की दशकों पुरानी मांग
1995 में पेंशन योजना लागू होने के बाद से अब तक कोई पेंशन संशोधन (अपडेशन) नहीं हुआ है।
हजारों
पेंशनधारी आज भी ₹5,000–₹10,000 की मासिक पेंशन पर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं,
जबकि वे 30
से 35 वर्षों तक
राष्ट्र की बैंकिंग व्यवस्था को कंधों पर ढोते रहे।
सरकार द्वारा बार-बार यह कहने के बावजूद कि “विषय पर विचार चल रहा है,” अब तक कोई ठोस निर्णय
नहीं लिया गया है। यही नहीं, सरकारी कर्मचारियों को नियमित पेंशन अपडेशन दिया जाता है,
परंतु बैंक
कर्मचारियों को उसी संवैधानिक अधिकार से वंचित रखा गया है।
बीमा पेंशनधारी
भी न्याय की राह तक रहे
LIC और अन्य सार्वजनिक बीमा कंपनियों के सेवानिवृत्त कर्मचारी
भी समान पीड़ा का अनुभव कर रहे हैं।
1995 की पेंशन योजना के अंतर्गत आने वाले इन कर्मचारियों की भी पेंशन आज तक अपडेशन
से वंचित है।
हालांकि इस संबंध में न्यायालयों में कई याचिकाएं लंबित हैं, और कुछ मामलों
में आदेश भी आए हैं, लेकिन अब तक कोई व्यवहारिक
कार्यान्वयन नहीं हो सका है। LIC जैसी संस्था,
जो अपने लाभ और
प्रतिष्ठा के लिए जानी जाती है, उसके पूर्व कर्मचारी आज जीवन के अंतिम पड़ाव पर आर्थिक असुरक्षा और उपेक्षा का शिकार हैं।
सम्मान के साथ
जीवन जीना भी अधिकार है
सेवानिवृत्त कर्मचारी यह प्रश्न पूछने को विवश हैं कि:
“क्या हमने सिर्फ काम किया — या राष्ट्रनिर्माण में भागीदारी निभाई?”
जब देश में वृद्धावस्था पेंशन, सामाजिक सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन की बात होती है, तो क्या यही
अपेक्षा नहीं की जाती कि जिन्होंने दशकों तक सेवा दी, उन्हें सम्मान के साथ जीने का हक मिले?
सरकार से
आग्रह: हो अब निर्णायक पहल
बैंक और बीमा दोनों क्षेत्रों के पेंशनधारियों की मांगें अब केवल संगठन या
ज्ञापन तक सीमित नहीं रहीं —
यह अब एक सामाजिक न्याय और मानवीय गरिमा का प्रश्न बन चुकी हैं।
सरकार और संबंधित मंत्रालयों से निवेदन है कि:
- बैंक और
बीमा पेंशनधारियों का पेंशन
अपडेशन तुरंत लागू किया जाए
- महंगाई के
अनुसार समान रूप से DA (महंगाई
भत्ता) दिया जाए
- सभी
पेंशनधारियों को न्यायोचित
और गरिमामय जीवन यापन का अवसर
मिले
पेंशन कोई कृपा
नहीं, यह एक सेवा का सम्मान है
आज आवश्यकता है कि समाज, मीडिया, और नीति-निर्माता यह समझें कि
पेंशनधारी अब
चुप नहीं हैं — वे संगठित, सजग और समर्पित हैं।
उनकी आवाज़ न
केवल न्याय की मांग है, बल्कि यह राष्ट्र के प्रति उनकी आस्था का प्रतीक भी है।
4 comments:
इस समस्या से हम एक दम अनजान थे. समझ से बाहर है कि सरकारी कर्मचारियों में इस प्रकार का भेदभाव क्यों? हमारा सुझाव है कि आप अपने इं लेखों को लिंक्डइन पर पोस्ट किया करें.
जरूर भाई साहब । ब्लॉग का लिंक शेयर करता हूँ जी
This concern must be dealt with humanistic approach...
Bahut achha likha h aapne yeh baat aapke madhiam se bhii sarkar tak pahunche gi.
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