बचपन को किताबों में कैद मत कीजिए — खेलें बच्चों का हक़ हैं
✍️ आचार्य रमेश सचदेवा
संस्थापक–निदेशक, G25 EDU-STEP
Pvt. Ltd.
आज हम एक ऐसी पीढ़ी तैयार कर रहे हैं, जो बोर्ड परीक्षा में 95% तो ला रही है, परंतु ज़िन्दगी
के मैदान में हार मान रही है। जिस उम्र में बच्चों के हाथों में गेंद, रिंग, और चाक होना
चाहिए, वहां मोबाइल, कोचिंग फाइल और तनाव है।
क्या हमने कभी सोचा है कि हमने बचपन से उसका “बचपन” ही छीन लिया है?
बच्चों के मस्तिष्क का सर्वाधिक विकास 6 से 14 वर्ष की आयु
में होता है, और यही वह समय है जब खेल-कूद, शारीरिक गतिविधियाँ और रचनात्मकता उन्हें मानसिक, शारीरिक और
भावनात्मक रूप से मज़बूत बनाती हैं। लेकिन अफसोस! हमने खेल को ‘समय की बर्बादी’ और
पढ़ाई को ‘एकमात्र सफलता का रास्ता’ मान लिया।
खेल क्यों हैं जरूरी?
खेल केवल पसीना बहाने की प्रक्रिया नहीं है, यह मस्तिष्क के
लिए एक टॉनिक है। खेल बच्चों को:
- फोकस और
निर्णय लेना
सिखाते हैं
- सहयोग और
नेतृत्व की भावना
जगाते हैं
- तनाव और
डर से बाहर
निकालते हैं
- और सबसे
ज़रूरी – उन्हें
खुश और ज़िंदा रखते हैं
समाज को चाहिए खेलों की पुनर्स्थापना
जब हर गली में क्रिकेट के विकेट की जगह कारें
खड़ी हैं, जब स्कूलों में खेल मैदान
की जगह बहुमंजिला इमारतें हैं, जब अभिभावकों
की चिंता “कितनी पढ़ाई हुई” तक सीमित है — तब ज़रूरत है नज़रिए को बदलने की।
खेलों को विद्यालय की शोभा नहीं, नैतिक ज़िम्मेदारी बनाइए। हर स्कूल को चाहिए कि सप्ताह में कम से कम 3 घंटे खेल-कला-संवाद को दे।
अभिभावकों के लिए संदेश
आपका बच्चा यदि हर समय चिड़चिड़ा, थका हुआ या आत्मग्लानि से भरा हुआ है — तो कृपया होमवर्क नहीं, उसका बचपन जांचिए।
खेलने दो उसे...
हारने दो उसे...
गिरकर उठने दो उसे...
तभी तो वह खड़ा होगा — दुनिया की भीड़ में सबसे अलग।
किताबें ज़रूरी हैं, पर खेल अनिवार्य हैं
यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे अंकों से नहीं, व्यक्तित्व से पहचाने जाएं, तो हमें खेल को स्कूलों और जीवन की मुख्यधारा में वापस लाना
ही होगा।
खेलों को पाठ्यक्रम का ‘वैकल्पिक’ हिस्सा मत बनाइए — यह बच्चों का मौलिक अधिकार है।
✍️ आचार्य रमेश सचदेवा
संस्थापक–निदेशक, G25 EDU-STEP
Pvt. Ltd.
📧 g25edustep@gmail.com | 📞
+91-9416925427
23 comments:
Absolutely right
Bilkul theek likha h ji.
Very nicely pointed.
Parents should read and understand what they really need to do with their children.
So well written and so true 😊
Games especially outdoor produces feel good hormone i.e. dopamine which is necessary for confidence building and personality development of kids.
U r right sir but in this compitition era work load of study is so much students has no time for other activities.
*उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते*
बचपना कभी भी मरना नहीं चाहिए
बहुत बढ़िया लेख बड़े भाई...🙏
अति श्रेष्ठ
बिलकुल सही कहा — बचपन सिर्फ पाठ्यपुस्तकों का बोझ नहीं, एक खुला आकाश है जहाँ उड़ने के लिए खेल, कल्पना और अनुभव जरूरी हैं। खेल न सिर्फ बच्चों का हक़ है, बल्कि उनका स्वाभाविक माध्यम भी है सीखने का, बढ़ने का, और खुद को जानने का। किताबें ज़रूरी हैं, पर खेलों की ज़मीन से ही असली जीवन कौशल पनपते हैं। आइए, बच्चों को खेलने का पूरा अवसर दें — खुले दिल, खाली मैदान और सीमित रोकटोक के साथ।
Well said..
Education ke sath sath khelna bhi jaruri hai,.
Thanks a lot.
Thanks a lot.
Thanks a lot.
Thanks a lot.
Thanks a lot.
Thanks a lot.
Thanks a lot.
आभार भाई साहब
Thanks a lot dear sister.
Thanks a lot.
Thanks a lot.
शुक्रिया भाई साहब सुंदर टिप्पणी के लिए
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