Friday, June 20, 2025

11वें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष लेख “योग – जीवन से जुड़ने की भारतीय शैली”


11वें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष लेख

योग जीवन से जुड़ने की भारतीय शैली
लेखक: आचार्य रमेश सचदेवा

योग शब्द का अर्थ केवल शरीर को किसी मुद्रा में मोड़ना, आसन करना या सांस रोकना नहीं है। योग का शाब्दिक अर्थ है – "जोड़ना"। जोड़ना आत्मा को परमात्मा से, शरीर को मन से, और व्यक्ति को समाज से।

आज 11वें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि योग एक सम्पूर्ण जीवन पद्धति है, न कि केवल एक फिटनेस अभ्यास।

धर्मों में योग की छाया
योग किसी विशेष धर्म का नहीं, बल्कि हर धर्म का सार है:

  • मुस्लिम नमाज़ की मुद्रा और अनुशासन – ध्यान और समर्पण के योग से जुड़े हैं।
  • ईसाई प्रार्थना और मौन चिंतन – आत्मसंयम और भक्ति योग का रूप हैं।
  • सिक्ख धर्म में सेवा, ध्यान, नाम-सिमरन – कर्मयोग और भक्ति योग का प्रतीक हैं।
  • जैन धर्म का तप, शुचिता और अहिंसा – राजयोग और ज्ञानयोग से मेल खाते हैं।

केवल आसन नहीं – जीवन का कर्म ही योग है

आज हम योग को सीमित कर रहे हैं कुछ विशेष आसनों, प्रणायाम और जिम वर्कआउट तक, जबकि वास्तविक योग तो हमारी दिनचर्या में छिपा है:

  • घर की सफाई, बर्तन धोना, कपड़े धोना – ये सभी कार्य शरीर, मन और कर्म का समन्वय कराते हैं।
  • अपने घर या कार्यालय की सफाई स्वयं करना – स्वच्छता और स्वावलंबन का योग है।
  • शौचालय जाना और पैरों के भार पर बैठकर स्वाभाविक ढंग से शौच करना – यह भी योग है जो शरीर के अंगों को सक्रिय रखता है।
  • बुजुर्गों के चरण स्पर्श करना, मंदिर/गुरुद्वारे में दंडवत प्रणाम करना – यह आत्मिक और भावनात्मक योग है।
  • ​रसोई घर में आसन्न पर बैठ कर खानया खान भी योग है 

आंकड़ों से प्रमाणित योग की सच्चाई
आज भी चिकित्सा क्षेत्र के आंकड़े स्पष्ट रूप से बताते हैं:

  • जो गृहिणी या आया नियमित घरेलू काम करती हैं – उनकी प्रसव प्रक्रिया अधिकतर सामान्य होती है।
  • जो श्रमिक दिनभर शारीरिक श्रम करते हैं – उन्हें ह्रदय रोग की आशंका नगण्य होती है।
  • जबकि जो लोग केवल मानसिक कार्य करते हैं और जिम में कृत्रिम कसरत करते हैं – उन्हें वही लाभ नहीं मिल पाता जो प्राकृतिक दैनिक योग से मिलता है।

मानसिकता से शरीर की सजगता
योग केवल शरीर के लिए नहीं, हर इंद्रिय की सात्विकता के लिए है:

  • आंखें – केवल देखने के लिए नहीं, विवेक से देखने के लिए।
  • कान – केवल सुनने के लिए नहीं, सत्य और उपयोगी सुनने के लिए।
  • जुबान – केवल बोलने के लिए नहीं, मधुर, सत्य और उपयोगी बोलने के लिए।
  • हाथ – केवल पकड़ने के लिए नहीं, सेवा और रचना के लिए।
  • पैर – केवल चलने के लिए नहीं, सन्मार्ग की ओर बढ़ने के लिए।

स्वावलंबन – सबसे बड़ा योग
जब हम अपने कार्यों को स्वयं करते हैं – बड़ों को प्रणाम, भोजन स्वयं परोसना, अपने वस्त्र धोना, सफाई करना – तो यह केवल कर्म नहीं बल्कि आत्मबल और योग की उच्च अवस्था होती है।

आओ इस योग दिवस पर संकल्प लें कि:

  • हम योग को केवल शरीर तक सीमित नहीं रखेंगे।
  • हम जीवन में अनुशासन, सेवा, स्वच्छता, श्रद्धा और स्वावलंबन को भी योग का हिस्सा मानेंगे।
  • हम आधुनिक जिम की मशीनों से नहीं, भारतीय परंपरा के दैनिक कार्यों से अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाएंगे।

योग करें – लेकिन केवल शरीर से नहीं, मन, कर्म और भाव से भी।

  • योग को केवल मंच पर किया जाने वाला प्रदर्शन न बनाएं।
  • बल्कि इसे दैनिक जीवन के आचरण, व्यवहार, सेवा और अनुशासन में उतारें।

योग कोई धर्म नहीं, जीवन जीने की कला है। यह भारत की देन है – जो सम्पूर्ण विश्व को जोड़ने की क्षमता रखती है।

 

6 comments:

Anonymous said...

Bahut khoob likha h . 👏👏👏

Anonymous said...

योग का महत्व बहुत बढ़िया शब्दों में समझाया है सर आपने l

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks a lot. तहदिल से आभार

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

बहुत बहुत शुक्रिया

Amit Behal said...

करो योग रहो निरोग...✌️

Director, EDU-STEP FOUNDATION said...

Thanks a lot.