सरकारें पढ़ा रही हैं ‘सिन² θ + कॉस² θ = 1’, पर जीने की कला नहीं
— प्रकृति से कटते समाज पर एक गंभीर चिंतन
✍️ आचार्य रमेश सचदेवा
शिक्षा का उद्देश्य क्या
केवल अंकों और अंकों की दुनिया में उलझे रहना है? क्या गणित, विज्ञान और प्रतियोगिताओं
की होड़ में हम मनुष्य होने की
बुनियादी समझ को खोते जा रहे
हैं?
आज का विद्यार्थी सिन² θ + कॉस² θ =
1 तो जानता है, लेकिन वह यह नहीं जानता कि पेड़ क्यों जरूरी हैं, पानी का एक-एक बूंद कितना अनमोल है, और एक घायल पक्षी को सहलाना भी एक शिक्षा है।
शिक्षा से प्रकृति गायब क्यों है?
आज सरकारी और निजी स्कूलों
में बच्चे तकनीकी ज्ञान में दक्ष हो रहे हैं, पर जीवन के प्रति उनकी संवेदना घटती जा रही है।
कक्षा में
हवा-पानी पर चैप्टर होता है, पर उस हवा को
महसूस करने और उस पानी को सहेजने की कोई वास्तविक प्रेरणा नहीं दी जाती।
पाठ्यक्रम में पर्यावरण अध्ययन है, पर व्यवहार में प्रकृति की उपेक्षा है।
धरती की पुकार सुनिए
- देश के कई हिस्सों में भूजल स्तर खतरनाक स्थिति में पहुंच
चुका है।
- नदियां सिकुड़ रही हैं, वर्षा चक्र असंतुलित हो गया है।
- वन्य जीवों का अस्तित्व खतरे में है, और हवा जहरीली हो चुकी है।
इन संकेतों के बावजूद हम अपने बच्चों को प्रकृति से जुड़ने की बजाय केवल अंकों की दौड़
में शामिल कर रहे हैं।
क्या हम केवल नंबर पैदा कर रहे हैं?
एक औसत विद्यार्थी 12वीं तक पहुंचते-पहुंचते:
- बोर्ड परीक्षा के लिए मल्टीपल चॉइस क्वेश्चन हल कर
लेता है,
- लेकिन किसी पेड़ के नीचे बैठकर शांति से सांस लेना नहीं जानता।
- वह फार्मूला याद रखता है, पर यह नहीं समझता कि मिट्टी भी जीवित होती है।
अब भी समय है: शिक्षा में संवेदना जोड़ी जाए
सरकारों और नीति-निर्माताओं से यह मांग होनी
चाहिए कि:
- जीवन की कला (Art of Living) को भी शैक्षणिक ढांचे में शामिल किया जाए।
- प्राकृतिक साक्षरता को अनिवार्य विषय बनाया जाए।
- हर स्कूल में छात्र-छात्राएं कम से कम एक पेड़ गोद लें, एक तालाब
साफ करें, एक घायल
पशु की देखभाल करें।
- परीक्षाओं से पहले प्रकृति से जुड़ने का अभ्यास कराया
जाए।
इस प्रकार हम कह सकते हैं
कि शिक्षा यदि जीवन के लिए है, तो उसमें प्रकृति, करुणा और संवेदना का सम्मिलन अनिवार्य है।
हम आने वाली पीढ़ी को केवल डिग्रियां नहीं, जीवन जीने की दृष्टि दें। तभी वे न
केवल अच्छे इंजीनियर या डॉक्टर बनेंगे,
बल्कि जिम्मेदार और
जागरूक नागरिक भी होंगे।
आज हमें शिक्षा को फॉर्मूलों से निकालकर फलों, फूलों और फेफड़ों तक लाना होगा — वरना हम गिनती में तो आगे होंगे, पर जीवन में पीछे।
4 comments:
Right said.
बिल्कुल Sir, शिक्षा ,मानवीय मूल्यों, व संवेदना के बिना अधूरी है......
Thanks
Thanks
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