दुनियाँ में किसी को भी बेकार मत समझो
लेखक – आचार्य रमेश सचदेवा
दुनिया में जब भी हम किसी व्यक्ति का मूल्यांकन करते हैं, तो अक्सर हम उसके बाहरी रूप, उसकी उपलब्धियों, या समाज में उसकी प्रसिद्धि से प्रभावित होते हैं। लेकिन यह दृष्टिकोण अधूरा और कई बार गलत भी साबित होता है।
जिस प्रकार एक पेड़ हमें जीवन का सन्देश देता है – हर पेड़ फल देने वाला नहीं होता, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उसका अस्तित्व निरर्थक है। कुछ पेड़ हमें छाया देते हैं, कुछ औषधियाँ प्रदान करते हैं, कुछ हवा को शुद्ध करते हैं और कुछ धरती को बाँधकर बाढ़ से बचाते हैं। यानी, हर पेड़ अपने तरीके से समाज और प्रकृति के लिए उपयोगी है।
इसी प्रकार मनुष्य को भी केवल उसकी प्रत्यक्ष उपलब्धियों से नहीं आँकना चाहिए। कोई व्यक्ति बड़ी डिग्रियाँ न रखता हो, लेकिन वह अपने परिवार और समाज के लिए नैतिकता, प्रेरणा और सहयोग का आधार बन सकता है। कोई बुज़ुर्ग आज सक्रिय रूप से कार्य न कर पा रहे हों, लेकिन उनका अनुभव और आशीर्वाद नई पीढ़ी को सही दिशा दे सकता है। एक साधारण मजदूर भी उस समाज का आधार स्तंभ है, जिसकी मेहनत पर घर, सड़कें और इमारतें खड़ी होती हैं।
समस्या यह है कि आज के युग में उपयोगिता को केवल आर्थिक दृष्टि से देखा जाता है। जो कमाता है वही “काम का” माना जाता है। लेकिन यह सोच संकुचित है। समाज तभी संतुलित रह सकता है जब हम हर व्यक्ति की भूमिका को समझें और उसका सम्मान करें।
तार्किक दृष्टिकोण:
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प्रकृति का नियम – प्रकृति में कुछ भी व्यर्थ नहीं है। हर वस्तु का कोई-न-कोई योगदान होता है।
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सामाजिक संतुलन – हर वर्ग, हर व्यक्ति अपने स्तर पर समाज के लिए आवश्यक है।
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मानवीय गरिमा – किसी को बेकार कहना उसकी गरिमा को ठेस पहुँचाना है, और यह मानवता के विरुद्ध है।
अतः, हमें यह सीखना चाहिए कि जिस प्रकार बिना फल वाला पेड़ भी छाया देता है, उसी प्रकार हर मनुष्य में कोई-न-कोई अच्छाई, उपयोगिता और योगदान अवश्य होता है। हमें उसे पहचानना और उसका सम्मान करना चाहिए।

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