Saturday, September 27, 2025

दुनियाँ में किसी को भी बेकार मत समझो

 

दुनियाँ में किसी को भी बेकार मत समझो

लेखक – आचार्य रमेश सचदेवा

दुनिया में जब भी हम किसी व्यक्ति का मूल्यांकन करते हैं, तो अक्सर हम उसके बाहरी रूप, उसकी उपलब्धियों, या समाज में उसकी प्रसिद्धि से प्रभावित होते हैं। लेकिन यह दृष्टिकोण अधूरा और कई बार गलत भी साबित होता है।

जिस प्रकार एक पेड़ हमें जीवन का सन्देश देता है – हर पेड़ फल देने वाला नहीं होता, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उसका अस्तित्व निरर्थक है। कुछ पेड़ हमें छाया देते हैं, कुछ औषधियाँ प्रदान करते हैं, कुछ हवा को शुद्ध करते हैं और कुछ धरती को बाँधकर बाढ़ से बचाते हैं। यानी, हर पेड़ अपने तरीके से समाज और प्रकृति के लिए उपयोगी है।

इसी प्रकार मनुष्य को भी केवल उसकी प्रत्यक्ष उपलब्धियों से नहीं आँकना चाहिए। कोई व्यक्ति बड़ी डिग्रियाँ न रखता हो, लेकिन वह अपने परिवार और समाज के लिए नैतिकता, प्रेरणा और सहयोग का आधार बन सकता है। कोई बुज़ुर्ग आज सक्रिय रूप से कार्य न कर पा रहे हों, लेकिन उनका अनुभव और आशीर्वाद नई पीढ़ी को सही दिशा दे सकता है। एक साधारण मजदूर भी उस समाज का आधार स्तंभ है, जिसकी मेहनत पर घर, सड़कें और इमारतें खड़ी होती हैं।

समस्या यह है कि आज के युग में उपयोगिता को केवल आर्थिक दृष्टि से देखा जाता है। जो कमाता है वही “काम का” माना जाता है। लेकिन यह सोच संकुचित है। समाज तभी संतुलित रह सकता है जब हम हर व्यक्ति की भूमिका को समझें और उसका सम्मान करें।

तार्किक दृष्टिकोण:

  1. प्रकृति का नियम – प्रकृति में कुछ भी व्यर्थ नहीं है। हर वस्तु का कोई-न-कोई योगदान होता है।

  2. सामाजिक संतुलन – हर वर्ग, हर व्यक्ति अपने स्तर पर समाज के लिए आवश्यक है।

  3. मानवीय गरिमा – किसी को बेकार कहना उसकी गरिमा को ठेस पहुँचाना है, और यह मानवता के विरुद्ध है।

अतः, हमें यह सीखना चाहिए कि जिस प्रकार बिना फल वाला पेड़ भी छाया देता है, उसी प्रकार हर मनुष्य में कोई-न-कोई अच्छाई, उपयोगिता और योगदान अवश्य होता है। हमें उसे पहचानना और उसका सम्मान करना चाहिए।

"कभी भी किसी को छोटा मत समझो,
हर इंसान में एक उजाला छुपा है,
बस उसे देखने के लिए
साफ़ नज़र और साफ़ दिल चाहिए।"


Thursday, September 25, 2025

मेरी माँ के हाथ


 मेरी माँ के हाथ

लेखक : आचार्य रमेश सचदेवा

मेरी माँ के हाथ —
ये सिर्फ हाथ नहीं,
मेरी पूरी ज़िंदगी की किताब हैं।

सुबह की पहली किरण से पहले,
जब गाँव की गलियों में अभी सन्नाटा होता था,
तो चूल्हे पर रोटियाँ सेंकते
उन हाथों से उठता धुआँ,
मेरे सपनों तक पहुँचकर कहता,
बेटाउठ जातेरे लिए नाश्ता तैयार है।

मेरी माँ के हाथ —
झाड़ू और पोछा पकड़ते–पकड़ते
कितनी बार छालों से भर गए,
पर कभी शिकायत न की।
घर चमकता रहा,
मगर उनके हाथ दिन-ब-दिन खुरदरे होते गए।

मेरी माँ के हाथ —
जब मैं बीमार पड़ा,
तो वही हाथ मेरे माथे पर दवा लगाते,
काढ़े का कड़वा स्वाद पिलाते,
और सहलाकर कहते,
तू ठीक हो जाएगाभगवान बड़ा करुणामय है।
उन हाथों की छुअन में
हर दवा से ज़्यादा असर था।

मेरी माँ के हाथ —
कभी डाँट भी खाते मैंने।
गलती करने पर वही हाथ उठे,
कभी चपत पड़ी,
कभी कान खींचा।
उस दर्द में भी छुपा था डर —
कि मेरा बच्चा बिगड़ न जाए।

मेरी माँ के हाथ —
रात को मेरी किताबें सँभालते,
कभी सिलाई–कढ़ाई करते,
कभी कहानी सुनाते।
उन हाथों से बुनी कहानियों में
राजकुमार भी थापरियों का महल भी,
और एक सिखावन भी —
कि सच्चाई से बढ़कर कुछ नहीं।

मेरी माँ के हाथ —
जब थककर घर लौटता,
तो वही हाथ मेरे सिर पर फिरते,
और सारे दुख उड़ जाते।
उन हाथों की गोद में
मुझे आज तक सबसे प्यारा स्वर्ग मिलता है।

मेरी माँ के हाथ
प्यार भी हैंदुलार भी,
दवा भी हैंदुआ भी,
डाँट भी हैंसंस्कार भी।
अगर मैं आज कुछ हूँ,
तो सिर्फ़ मेरी माँ के हाथों की बदौलत हूँ।

Thursday, September 18, 2025

शिक्षा के स्तर में असमानता – ग्रामीण बनाम शहरी


    शिक्षा के स्तर में असमानता – ग्रामीण बनाम शहरी

लेखक – आचार्य रमेश सचदेवाशिक्षविदद एवं विचारक

भारत में शिक्षा को सभी का मौलिक अधिकार माना गया है, किंतु वास्तविकता यह है कि आज भी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में शिक्षा के स्तर में गहरी खाई बनी हुई है।

ग्रामीण शिक्षा की स्थिति

गाँवों के विद्यालय दिन-प्रतिदिन कर्ज़ और आर्थिक संकट के बोझ में दबते जा रहे हैं। फंड की कमी, घटती विद्यार्थियों की संख्या और बढ़ते खर्चों के कारण ये विद्यालय अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। यहाँ के शिक्षकों को भी रोजगार और संसाधनों के लिए अंततः शहरों की ओर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे यह खाई और भी चौड़ी होती जा रही है।

शहरी विद्यालयों की स्थिति

शहरों के विद्यालय आधुनिक संसाधनों, तकनीकी साधनों और योग्य शिक्षकों से परिपूर्ण हैं। वे परिवहन साधनों का उपयोग करके गाँव-गाँव में अपने विज्ञापन और प्रचार-प्रसार के जाल फैलाते हैं। परिणामस्वरूप ग्रामीण विद्यालयों में नामांकन घटता है और उनकी स्थिति और कमजोर हो जाती है। यह असमानता शिक्षा के संतुलन को और गहरा आघात पहुँचाती है।

असमानता के परिणाम

  • ग्रामीण बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं और रोजगार के अवसरों में पिछड़ जाते हैं।
  • गाँवों में पलायन बढ़ता है, जिससे शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक ढाँचे पर भी असर पड़ता है।
  • शहरी शिक्षा लगातार आगे बढ़ती जाती है, जबकि ग्रामीण शिक्षा पिछड़ती जाती है।

समाधान और संदेश

  • सरकार के लिए संदेश:  सरकार को चाहिए कि ग्रामीण विद्यालयों के लिए विशेष पैकेज, डिजिटल सुविधाएँ, आधुनिक तकनीक और योग्य शिक्षकों की नियुक्ति सुनिश्चित करें। साथ ही, शहरी विद्यालयों के अंधाधुंध विज्ञापन और अनुचित प्रतिस्पर्धा पर नियंत्रण रखे।
  • समाज के लिए संदेश: समाज के संपन्न वर्ग और स्थानीय लोग आगे बढ़कर ग्रामीण विद्यालयों को सहयोग दें। बच्चों को स्थानीय विद्यालयों में पढ़ाने के लिए प्रेरित करें और शिक्षा को दान, सेवा और सहयोग का माध्यम बनाएँ।

शिक्षा केवल शहर की चारदीवारी में सीमित नहीं रहनी चाहिए। यदि गाँवों का बच्चा पीछे रह गया तो भारत की आत्मा भी पीछे रह जाएगी। हमें समझना होगा कि शिक्षा का दीपक तभी रोशन होगा जब गाँव और शहर दोनों समान रूप से उजाले में होंगे।

यदि हम ग्रामीण और शहरी शिक्षा की खाई को पाटने में सफल होते हैं, तो भारत का भविष्य और भी उज्ज्वल होगा। आवश्यकता केवल इतनी है कि सरकार ठोस कदम उठाए, समाज जागरूक बने और हर नागरिक शिक्षा को समान रूप से उपलब्ध कराने में अपना योगदान दे।

शिक्षा का अधिकार तभी सार्थक होगा जब गाँव का बच्चा और शहर का बच्चा एक ही मंच पर खड़ा होकर सपनों की उड़ान भर सके।

 

Wednesday, September 17, 2025

कर नियम, पोर्टल की तकनीकी दिक्कतें और समयसीमा का दबाव

 


कर नियम, पोर्टल की तकनीकी दिक्कतें और समयसीमा का दबाव

✍️ लेखक – आचार्य रमेश सचदेवा

सरकार हर वर्ष करदाताओं और चार्टर्ड अकाउंटेंट्स (CAs) के सामने लुभावने सपने पेश करती है कि कर प्रणाली सरल हो रही है और डिजिटल पोर्टल पूरी तरह सक्षम है। परंतु सच्चाई यह है कि ये वादे केवल आकड़ों की बाज़ीगरी तक सीमित हैं। जमीनी हकीकत में करदाता और पेशेवर आज भी तकनीकी असफलताओं, जटिल नियमों और अव्यावहारिक समयसीमाओं की गिरफ्त में फंसे हैं।

सरकार की कठोर सोच और करदाताओं की पीड़ा

आम जनता और CAs जब ITR फाइलिंग की समय सीमा बढ़ाने की मांग करते हैं तो सरकार उनकी आवाज़ को सुनने के बजाय अनसुना कर देती है। इससे यह आभास होता है कि सरकार का लक्ष्य करदाताओं की सुविधा नहीं, बल्कि उनसे फाइन वसूलने की लालसा है। यह रवैया लोकतंत्र की आत्मा पर एक गहरा धब्बा है।

तकनीकी और व्यवस्थागत वास्तविकताएँ

  1. सॉफ्टवेयर अपडेट का सच – ITR पोर्टल में किए गए सुधार और बदलाव स्वचालित (Automatic) नहीं होते। इन्हें लागू करने और स्थिर करने में समय लगता है। लेकिन सरकार यह मानकर चलती है कि आदेश देते ही सबकुछ दुरुस्त हो जाएगा।
  2. तारतम्य की कमीसमय सीमा बढ़ाने का निर्णय केवल आयकर विभाग का नहीं होता। इसमें CBDT, वित्त मंत्रालय, सॉफ्टवेयर सपोर्ट कंपनियों और बैंकिंग नेटवर्क का भी समन्वय होना आवश्यक है। दुर्भाग्य से यह तारतम्य अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
  3. सिर्फ आदेश और सज़ा का रवैयासरकार का काम केवल आदेश देना, जुर्माना लगाना या सज़ा देना नहीं होना चाहिए। उसका असली काम है व्यवस्था को सरल, पारदर्शी और विश्वसनीय बनाना

पोर्टल की दुर्दशा और जनता की विवशता

  • हर वर्ष लाखों करदाता पोर्टल की खराबी के कारण लॉगिन समस्या, OTP विफलता, अपलोड एरर और सर्वर डाउन जैसी बाधाओं से जूझते हैं।
  • अंतिम दिनों में तो पोर्टल पूरी तरह रेंगने लगता है, जिससे सही-सही ITR फाइल करना लगभग असंभव हो जाता है।
  • इसके बावजूद सरकार कठोर डेडलाइन पर अड़ी रहती है, मानो करदाता कोई अपराधी हों।

नाकामियों को उजागर करते आँकड़े

  • FY 2023–24 तक लगभग 7.28 करोड़ ITR दाख़िल हुए, लेकिन लाखों करदाता अंतिम सप्ताह में तकनीकी गड़बड़ियों से परेशान रहे।
  • एक सर्वेक्षण के अनुसार, 49% करदाता तकनीकी समस्याओं के कारण समय पर ITR दाख़िल नहीं कर सके।
  • लगभग 1.2 मिलियन करदाताओं को अब तक रिफंड नहीं मिला। यह सरकार की प्रणालीगत विफलता का स्पष्ट उदाहरण है।

रचनात्मक और व्यवहारिक सुझाव

  1. लचीली समय सीमाकम से कम 45 दिन की अतिरिक्त ग्रेस अवधि को व्यवस्था का स्थायी हिस्सा बनाया जाए।
  2. मजबूत पोर्टलसर्वर क्षमता को 10 करोड़ यूज़र्स तक एक साथ झेलने लायक बनाया जाए।
  3. सरल नियमावलीछोटे करदाताओं (सैलरीधारी, पेंशनभोगी, छोटे व्यापारी) के लिए अलग सरल फॉर्म उपलब्ध हो।
  4. तारतम्ययुक्त निर्णयसमय सीमा बढ़ाने या नियम संशोधन से पहले संबंधित विभागों और तकनीकी संस्थाओं से पूर्ण परामर्श लिया जाए।
  5. जन-भागीदारीकरदाताओं और CAs के सुझावों को नीतिगत सुधारों में शामिल किया जाए।
  6. हेल्पलाइन और लोकल सहायता केंद्रहर ज़िले में त्वरित समाधान केंद्र स्थापित किए जाएँ।

सरकार के लिए चेतावनी

लोकतांत्रिक सरकार का काम केवल आदेश देना या जुर्माना लगाना नहीं है, बल्कि नागरिकों की वास्तविक परिस्थितियों को समझना और उनकी समस्याओं का समाधान करना है। ITR पोर्टल की बार-बार की विफलता, जटिल नियम और अव्यावहारिक समयसीमा इस बात के प्रमाण हैं कि सरकार करदाताओं के प्रति संवेदनशील नहीं रही।

यदि अब भी सरकार ने आंकड़ों की बाज़ीगरी छोड़कर जमीनी सच्चाई पर आधारित सुधार नहीं किए, तो यह कर प्रणाली करदाताओं के विश्वास को तोड़ेगी और लोकतंत्र की गरिमा को कलंकित करेगी
करदाता देश के शत्रु नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण के आधार स्तंभ हैं – उन्हें अनसुना करना और दंडित करना एक अन्यायपूर्ण शासन व्यवस्था का द्योतक है।

 

Tuesday, September 16, 2025

विश्व ओज़ोन दिवस पर विशेष लेख “ओज़ोन परत: धरती की ढाल”

 


विश्व ओज़ोन दिवस पर विशेष लेख ओज़ोन परत: धरती की ढाल

लेखक – आचार्य रमेश सचदेवा

हर साल 16 सितम्बर को पूरी दुनिया विश्व ओज़ोन दिवस मनाती है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारी धरती के ऊपर मौजूद ओज़ोन परत (Ozone Layer) केवल एक परत नहीं बल्कि हमारी जीवन रक्षा कवच है। यह हमें सूर्य की खतरनाक पराबैंगनी किरणों (UV Rays) से बचाती है। यदि यह परत कमजोर हो जाए तो त्वचा कैंसर, आँखों की बीमारियाँ, फसलों की क्षति और पर्यावरणीय असंतुलन जैसी गंभीर समस्याएँ सामने आ सकती हैं।

✈️ बढ़ता वायु-यातायात: सबसे बड़ा खतरा

आज सबसे गंभीर खतरा एयर ट्रैफिक से है। दुनिया भर में रोज़ाना एक लाख से अधिक उड़ानें होती हैं और विमान वातावरण की ऊँचाई पर जाकर सीधे ओज़ोन परत को प्रभावित करते हैं।

  • वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि विमान इंजन से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और अन्य उत्सर्जन ओज़ोन परत को तोड़ते हैं।
  • 2000 से 2020 के बीच हवाई यात्रा से होने वाला उत्सर्जन लगभग दोगुना हुआ है।
  • इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रांसपोर्ट (ICCT) के अनुसार, केवल हवाई यातायात से दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन का लगभग 2.5% हिस्सा आता है, और यह दर तेजी से बढ़ रही है।

📜 भारत और विश्व की पहलें

ओज़ोन की रक्षा के लिए दुनिया ने मिलकर Montreal Protocol (1987) पर सहमति बनाई थी। भारत ने भी इस पर हस्ताक्षर कर CFC (Chlorofluorocarbons) जैसे ओज़ोन-नाशक रसायनों का उपयोग लगभग पूरी तरह समाप्त कर दिया है।

  • भारत सरकार ने हाल ही में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) को चरणबद्ध तरीके से घटाने का रोडमैप जारी किया है।
  • पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, इन कदमों से 2030 तक भारत लगभग 100 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन घटा सकेगा।
  • 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, ओज़ोन परत में सुधार के संकेत मिले हैं और उम्मीद है कि 2066 तक यह परत पूरी तरह सामान्य हो जाएगी — बशर्ते कि हम अपने प्रयास जारी रखें।

🌱 हम क्या कर सकते हैं?

ओज़ोन की रक्षा केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है।

  1. अनावश्यक हवाई यात्रा कम करेंछोटी दूरी के लिए ट्रेन या बस को प्राथमिकता दें।
  2. पर्यावरण मित्र ऊर्जा अपनाएँसौर, पवन और इलेक्ट्रिक साधनों का उपयोग बढ़ाएँ।
  3. वनों की रक्षा करेंपेड़ों का कटाव रोकना और बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करना सबसे आसान उपाय है।
  4. जागरूकता फैलाएँस्कूलों, कॉलेजों और संस्थानों में इस विषय पर चर्चा और अभियान चलाएँ।

⚠️ सरकार और समाज के लिए चेतावनी

यह दिन केवल भाषण देने का नहीं बल्कि ठोस कदम उठाने का है। यदि एयर ट्रैफिक, प्रदूषण और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर काबू नहीं पाया गया, तो कल हमें सांस लेने के लिए भी शुद्ध हवा और जीने के लिए सुरक्षित पर्यावरण नहीं मिलेगा।

"धरती का संतुलन बचाना है,
आने वाली पीढ़ी को मुस्काना है।
ओज़ोन की ढाल को टूटने न देना,
हर इंसान को अब जिम्मेदारी निभाना है।"